Thursday, November 19, 2009

वो कितना मेहरबान था के हज़ारों ग़म दे गया

वो कितना मेहरबान था के हज़ारों ग़म दे गया
हम कितने खुद गर्ज़ कुछ न दे सके प्यार के सिवा

--अज्ञात

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