कौन कहता है गम नहीं है रे
आँख ही बस ये नम नहीं है रे
चाहता है तू आदमी होना
आरजू ये भी कम नहीं है रे
मैं हूँ, बस मैं ही, सिर्फ मैं ही हूँ
एक भी शब्द "हम" नहीं है रे
थी दुआ जिसकी बेअसर उसकी
बद्दुआ में भी दम नहीं है रे
वो मेरा हमसफ़र तो होगा पर
वो मेरा हमकदम नहीं है रे
दर्द दे और छीन ले आँसू
इससे बढ़कर सितम नहीं है रे
खुद को 'अद्भुत' मैं मान लूं शायर
मुझको इतना भी भ्रम नहीं है रे
-अरुण मित्तल अद्भुत
Source : http://kavita.hindyugm.com/2009/06/blog-post_12.html
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Sunday, June 14, 2009
Wednesday, March 11, 2009
hamesha vo meri ummeed se badhkar nikalta hai
हमेशा वो मेरी उम्मीद से बढ़कर निकलता है
मेरे घर में अब अक्सर मेरा दफ्तर निकलता है
कहाँ ले जा के छोड़ेगा न जाने काफिला मुझको
जिसे रहबर समझता हूँ वही जोकर निकलता है
मेरे इन आंसुओं को देखकर हैरान क्यों हो तुम
मेरा ये दर्द का दरिया तो अब अक्सर निकलता है
तुझे मैं भूल जाने की करूं कोशिश भी तो कैसे
तेरा अहसास इस दिल को अभी छूकर निकलता है
अब उसकी बेबसी का मोल दुनिया क्या लगायेगी
वो अपने आंसुओं को घर से ही पीकर निकलता है
निकलता ही नहीं अद्भुत किसी पर भी मेरा गुस्सा
मगर ख़ुद पर निकलता है तो फ़िर जी भर निकलता है
--अरूण मित्तल अद्धुत
मेरे घर में अब अक्सर मेरा दफ्तर निकलता है
कहाँ ले जा के छोड़ेगा न जाने काफिला मुझको
जिसे रहबर समझता हूँ वही जोकर निकलता है
मेरे इन आंसुओं को देखकर हैरान क्यों हो तुम
मेरा ये दर्द का दरिया तो अब अक्सर निकलता है
तुझे मैं भूल जाने की करूं कोशिश भी तो कैसे
तेरा अहसास इस दिल को अभी छूकर निकलता है
अब उसकी बेबसी का मोल दुनिया क्या लगायेगी
वो अपने आंसुओं को घर से ही पीकर निकलता है
निकलता ही नहीं अद्भुत किसी पर भी मेरा गुस्सा
मगर ख़ुद पर निकलता है तो फ़िर जी भर निकलता है
--अरूण मित्तल अद्धुत
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