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Sunday, June 14, 2009

कौन कहता है गम नहीं है रे

कौन कहता है गम नहीं है रे
आँख ही बस ये नम नहीं है रे

चाहता है तू आदमी होना
आरजू ये भी कम नहीं है रे

मैं हूँ, बस मैं ही, सिर्फ मैं ही हूँ
एक भी शब्द "हम" नहीं है रे

थी दुआ जिसकी बेअसर उसकी
बद्दुआ में भी दम नहीं है रे

वो मेरा हमसफ़र तो होगा पर
वो मेरा हमकदम नहीं है रे

दर्द दे और छीन ले आँसू
इससे बढ़कर सितम नहीं है रे

खुद को 'अद्भुत' मैं मान लूं शायर
मुझको इतना भी भ्रम नहीं है रे

-अरुण मित्तल अद्भुत


Source : http://kavita.hindyugm.com/2009/06/blog-post_12.html

Wednesday, March 11, 2009

hamesha vo meri ummeed se badhkar nikalta hai

हमेशा वो मेरी उम्मीद से बढ़कर निकलता है
मेरे घर में अब अक्सर मेरा दफ्तर निकलता है

कहाँ ले जा के छोड़ेगा न जाने काफिला मुझको
जिसे रहबर समझता हूँ वही जोकर निकलता है

मेरे इन आंसुओं को देखकर हैरान क्यों हो तुम
मेरा ये दर्द का दरिया तो अब अक्सर निकलता है

तुझे मैं भूल जाने की करूं कोशिश भी तो कैसे
तेरा अहसास इस दिल को अभी छूकर निकलता है

अब उसकी बेबसी का मोल दुनिया क्या लगायेगी
वो अपने आंसुओं को घर से ही पीकर निकलता है

निकलता ही नहीं अद्भुत किसी पर भी मेरा गुस्सा
मगर ख़ुद पर निकलता है तो फ़िर जी भर निकलता है

--अरूण मित्तल अद्धुत