ज़िन्दगी तुझ को मनाने निकले
हम भी किस दर्जा दीवाने निकले
[दर्जा=type of, to what limit]
कुछ तो दुश्मन थे मुख़ालिफ़-सफ़ में
कुछ मेरे दोस्त पुराने निकले
[मुख़ालिफ़-सफ़=in the enemy camp]
नज़र_अन्दाज़ किया है उस ने
ख़ुद से मिलने के बहाने निकले
बे-बसारत है ये बस्ती यारो
आईना किस को दिखाने निकले
[बे-बसारत=blind]
इन अन्धेरों में जियोगे कब तक
कोई तो शमा जलाने निकले
--अमीर कज़लबाश
Source : http://www.urdupoetry.com/kazalbash02.html
बहुत खूब,
ReplyDeleteथोडा और आगे तक खीचते गजल को तो क्या बात थी !
इन अन्धेरों में जियोगे कब तक
कोई तो शमा जलाने निकले
हर कोई बस यही सोच कर चुप है
कि भला मैं ही क्यों माचिस खर्च करू !!