Wednesday, March 31, 2010

दुआ का टूटा हुआ हर्फ़ सर्द आह में है

दुआ का टूटा हुआ हर्फ़ सर्द आह में है
तेरी जुदाई का मंज़र अभी निगाह में है

तेरे बदलने के बावजूद तुझको चाहा है
ये एतराफ भी शामिल मेरे गुनाह में है
[एतराफ=Admission/Confession]

अज़ाब देगा तो फिर मुझको ख्वाब भी देगा
मैं मुत्मईं हूँ, मेरा दिल तेरी पनाह में है
[मुत्मईं=Appeased, Quiescent]

जिसे बहार के मेहमान खाली छोड़ गए
वो एक मकान अभी तक मकीन की चाह में है
[मकीन=मकान में रहने वाले]

यही वो दिन थे जब एक दूसरे को पाया था
हमारी सालगिराह ठीक अब के माह में है

--अज्ञात

Tuesday, March 30, 2010

मैंने कागज़ पे भी देखी हैं बना कर आँखें

मुझ से मिलती हैं तो मिलती हैं चुरा कर आँखे
फिर वो किसके लिए रखती है सज़ा कर आँखें

मैं उन्हें देखता रहता हूँ जहाँ तक देखूं
एक वो हैं, के जो देखे ना, उठा कर आँखें

उस जगह आज भी बैठा हूँ अकेला यारो
जिस जगह छोड़ गये थे वो मिला कर आँखें

मुझ से नज़रें वो अक्सर चुरा लेता है सागर
मैंने कागज़ पे भी देखी हैं बना कर आँखें

--सागर

तुम्हारे साथ किसे फैसले की फुरसत थी

तुम्हारे साथ किसे फैसले की फुरसत थी
तुम्हारे बाद भला फैसला मैं क्या करता

--अज्ञात

बात बनती है मगर कोई बनाए तो सही

बात बनती है मगर कोई बनाए तो सही
हमको एक बार कोई दिल में बसाए तो सही
हम बता देंगे मोहब्बत की हकीक़त क्या है
कोई एक बार वफ़ा कर के दिखाए तो सही

--अज्ञात

Monday, March 29, 2010

तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो...

किसी ने चाहा था लड़कपन में तुमको
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो
मन ही मन अपना बनाया था तुमको
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो

उसे न आता था प्यार जताना
उसे न आता था तुमको मनाना
इसलिए शायद सताया था तुमको
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो

दिल ही दिल में अपने ख्वाब बुनता था
सपनो को कलियाँ तेरे लिए चुनता था
कभी न लेकिन बताया था तुमको
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो

रातों को उठकर बिस्तर से जागता था
वो तुम्हे चाहता था तुम्हे मांगता था
दुनिया से रूठकर भी मनाया था तुमको
तुम्हे तो शायद याद भी न हो

सोचता था क्या होगा अंजाम मेरा
कोपियों पे लिखता था वो नाम तेरा
किताबों मेंफूल सा सजाया था तुमको
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो

पीछे कि सीट से क्लास में बैठकर
प्यार से वो तुमको देखता था अक्सर
चाहा मगर गले से लगा न पाया तुमको
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो

बचपन कि वो यादें अब भी आती है
बैचैन करती हैं मुजको रुलाती हैं
सोचा बहत ''तोमर'' भुला न पाया तुमको
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो....
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो...
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो...

डॉ. विकास तोमर.

Saturday, March 27, 2010

ਅਸੀਂ ਆਪਣੇ ਵੈਰੀ ਆਪ ਹੋਏ

ਅਸੀਂ ਆਪਣੇ ਵੈਰੀ ਆਪ ਹੋਏ
ਅਸੀਂ ਖੁਦ ਨੂੰ ਜ਼ਹਰ ਪਿਲਾ ਬੈਠੇ

ਜਿਸ ਮੌਤ ਤੋ ਲੋਕ ਡਰਦੇ ਨੇ
ਅਸੀਂ ਉਸ ਮੌਤ ਨੂੰ ਮੀਤ ਬਣਾ ਬੈਠੇ

ਏਸ ਇਸ਼ਕ਼ ਚ ਐਨੇ ਫਟ ਖਾਦੇ ਨੇ
ਅਸੀਂ ਆਪਣੀ ਆਪ ਗਵਾ ਬੈਠੇ

ਇਕ ਵਾਰ ਖਾ ਕੇ ਧੋਖਾ, ਲੋਕ ਸੰਭਲ ਜਾਂਦੇ
ਅਸੀਂ ਫਿਰ ਚਲ ਓਸੇ ਰਾਹ ਬੈਠੇ

ਜੋ ਸਾਨੂ ਦਰਦ ਦੇਣਾ ਚਾਹੰਦੇ ਸੀ
ਅਸੀਂ ਉਸਨੁ ਹਮਦਰਦ ਬਣਾ ਬੈਠੇ

ਹੁਣ ਤਾ ਆਸ ਬਚੀ ਸੀ ਜੀਉਣ ਦੀ
ਅਸੀਂ ਓਹ ਵੀ ਆਸ ਮੁਕਾ ਬੈਠੇ

--Unknown

एक हास्यसपद वाकया

वैसे कहते हैं कि हर भाषा कि अपनी एक खास बात होती है, अगर वो समझ में आये, तो खूब आनंद देती है, और अगर न आये, तो सिर्फ एक मजाक बन के रह जाती है


एक जगह मुशायरा हो रहा था, तो एक हिंदी कवि से रहा नहीं गया, पहुँच गए stage पर अपना शेर सुनाने को

न गिला करता हूँ, न शिकवा करता हूँ
तुम सलामत रहो, यही दुआ करता हूँ

अब एक मद्रासी कवि कैसे चुप रहते, वो भी कहने लगे मुझे भी शेर सुनाना है

न गीला करता हूँ, न सूखा करता हूँ
तुम साला मत रहो, यही दुआ करता है

लम्हे ये सुहाने साथ हों न हों

लम्हे ये सुहाने साथ हों न हों
कल में आज जैसी कोई बात हो न हो
आपका प्यार हमेशा इस दिल में रहेगा
चाहे पूरी उमर मुलाकात हो न हो

--अज्ञात

Thursday, March 25, 2010

जल जल कर राख का ढेर बन जाने का दुःख नहीं

जल जल कर राख का ढेर बन जाने का दुःख नहीं
सदमा तो ये है पैरों में रौंदा जा रहा हूँ
--अज्ञात

Some beautiful collection from a friend's blog..Part4

A Gujarati poet - Gani Dahiwala in a very famous Gazal of his says this about comparison of his love with the beloved who got separated as :
Tame Raaj Raani na Chir sam, Ame Rank Naar ni Chundadi,
Tame Tan par raho ghadi-be-ghadi, ame saath daiye kafan sudhi
which can be translated as :

Tum ho jaise kisi maharaani ke vastr-aabhushan, hum hai gareeb naari ki chunari,
Tum rehte ho tan par pal-do-pal, ham saath dete hai kafan tak.

Gulzaar, who has written many memorable songs in his long career as poet and who has written some of the most contemporary songs at all times writes in one of his early works about the way of living in this world :

Jab bhi ji chaahe nayi duniya saja lete hai log,
ek chehre pe kai chehre laga lete hai log

And this incompleteness of things that always remains with everyone and that is always beautifully summrized by poets and can also be seen in Nida Fazli's beautiful words :

Kabhi kisi ko mukammal Jahaan nahi milta,
Kahin zameen to kahin aasman nahi milta


Wish to write more on such couplets as I keep remembering them. May be some other time part 2 :) But something here for a day like today (23rd March)

Some beautiful collection from a friend's blog..Part3

This idea of conveying the start and end of life in terms of childhood and old age has been used by umpteen number of poets and have been used really well. But there were poets and there was Ghalib. The great Mirza Ghalib, who with an air of above the world feeling, wrote :

बाज़ीचा-ए-अत्फाल है दुनिया मेरे आगे
होता है शब्-ओ-रोज तमाशा मेरे आगे
(Baazicha - e - Atfal = Playground of kids)

And many poets who have been disenchanted with the society and life and the world in general have written things that would mean a world to many poetry lovers like us. Saahir writes beautifully about the idea (And this was sung by Mhd.Rafi with equal finnesse)

तंग आ चुके हैं कश्म-ए-कश-ए-जिंदगी से हम
ठुकरा न दे जहां को कही बेदिली से हम

Saahir famously had a life of failed love affairs and this also goes with lives of many other poets. Poetry hence is created from the indepth feeling of not getting the beloved. Mariz explains how his words have become his own enemies in this couplet,

Mujh par Sitam kari gaya, mari ghazal na sher,
Vaanchi ne rahe chhe e koik bijana khayal ma

which can be translated to :

मुझ पर सितम ढा गए मेरी गज़ल के शेर
पढ़ पढ़ के खो रहे हैं, वो किसी और के ख़याल में

A similar emotion as conveyed by Saahir, about a lost passionate love affair, can be found in the following 4 lines that he wrote for a song :

Tumhe bhi koi uljhan rokti hai peshkadmi se,
Mujhe bhi log kehte hai ki ye jalwe paraye hain,
Mere humraah bhi rusvaaiyaan hai mere maanzi ki,
Tumhare saath bhi guzari hui raaton ke saaye hai

Some beautiful collection from a friend's blog..Part2

And there have been years of poetry that has experimented in this mixing of languages. One of the best and the one of the oldest that I remember is by Amir Khusro (1253-1325). Thinking that this kind of mastery of mixing persian with Braj bhasa existed centuries back, humbles our mind (In the first verse, the first line is in Persian, the second in Brij Bhasha, the third in Persian again, and the fourth in Brij Bhasha.)

ज़ीहाल-ए मिस्कीन मकुन तघाफुल,
दुराए नैना बनाए बतियां;
की ताब-ए हिजरां नदाराम ए जान,
ना लेहो काहे लगाए छातियाँ

Which can be translated (Source : Wikipedia) as :

Do not overlook my misery
Blandishing your eyes, and weaving tales;
My patience has over-brimmed, O sweetheart
Why do you not take me to your bosom?

There are a lot of couplets like these that I admire and are timeless.And I truly belive that writing something contemporary is as difficult as such timeless pieces. The one that I like in the contemporary ones is a couplet by Javed Akhtar on the burgeoning city life :

उँची इमारतो से मकान मेरा घिर गया,
कुछ लोग मेरे हिस्से का सूरज भी खा गये

And the poets keep on writing a lot on God, on lost love, on philosophies of life, on emotions, on love and everything that they see around. Every poet has a past and has a story to tell along with. Nida Fazli whose life like that of poets like Saahir had been impacted by parition of our country writes about worshipping God in these beautiful lines :

घर से मस्जिद बहुत दूर है, चल आ यूं कर ले
किसी रोते हुए बच्चे को हास्य जाए

Nida fazli has written such beautiful verses, including the idea of innocence of kids that most of those lines have been memorable for me. For example.

बच्चों के छोटे हाथो को चाँद सितारे छू लेने दो
चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जायेंगे

I remember a similar nice line from Javed Akhtar that talks of how the kids of today's world are getting smarter :

चाँद में बुढिया, बुजुर्गो में खुदा देखें
भोले इतने भी अब ये बच्चे नहीं होते

Some beautiful collection from a friend's blog..Part1

There is something very specific about poetry in Indian language that is different from its English counterparts - The art of writing poetry in couplets. A couplet that is complete in itself, in its meaning and its story and also fits in to the overall poetry made out of these beautiful couplets together. I am not thinking hard as I am typing this. I would like to go through a few of my favourite couplets as they come to my mind. I am not keeping it constrained by a theme / poet / Language. Ghazal writing - the form for which the couplets are created is a very strong form created in Urdu and the style has over the years been adopted by Hindi and Gujarati poets too. Many poets believe that Ghazal's are the most heart touching write-ups of a poet, as Mariz (A Gujarati Poet) writes :

હોઈ ઉર્દૂ ની ઓથ કે હોઈ ગુર્જરી ની ઑ મરીઝ,
ગઝલો ફકત લખાઈ છે, મોહબ્બત ની ઝબાનમા

Which can be roughly translated to :

चाहे लू उर्दू की या लू गुजराती की कसम मरीज़,
ग़ज़ले सिर्फ़ लिखी जाती है , मोहब्बत की ज़ुबान में

Monday, March 22, 2010

मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले

मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले
उसे समझने का कोई तो सिल_सिला निकले

किताब-ए-माज़ी के पन्ने उलट के देख ज़रा
ना जाने कौन सा सफ़ाह मुड़ा हुआ निकले

जो देखने में बहुत ही क़रीब लगता है
उसी के बारे में सोचो तो फ़ासला निकले

--वसीम बरेलवी


Source : http://www.urdupoetry.com/wbarelvi05.html

अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे

अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे
तेरी मर्ज़ी कि मुताबिक नज़र आयें कैसे

घर सजाने का तस्सवुर तो बहुत बाद का है
पहले ये तय हो कि इस घर को बचायें कैसे

क़ह-क़हा आँख की बरताव बदल देता है
हँसनेवाले तुझे आँसू नज़र आयें कैसे

कोई अपनी ही नज़र से तो हमें देखेगा
एक क़तरे को समुन्दर नज़र आयें कैसे

--वसीम बरेलवी

Source : http://www.urdupoetry.com/wbarelvi02.html

हुस्न बाज़ार हुआ क्या कि हुनर ख़त्म हुआ

हुस्न बाज़ार हुआ क्या कि हुनर ख़त्म हुआ
आया पलको पे तो आँसू का सफ़र ख़त्म हुआ

उम्र भर तुझसे बिछड़ने की कसक ही न गयी ,
कौन कहता है की मुहब्बत का असर ख़त्म हुआ

नयी कालोनी में बच्चों की ज़िदे ले तो गईं ,
बाप दादा का बनाया हुआ घर ख़त्म हुआ

जा, हमेशा को मुझे छोड़ के जाने वाले ,
तुझ से हर लम्हा बिछड़ने का तो डर ख़त्म हुआ

--वसीम बरेलवी

बेशक मेरे नसीब पे रख अपना इख्तियार

बेशक मेरे नसीब पे रख अपना इख्तियार
लेकिन मेरे नसीब में क्या है बता तो दे
--राणा सहरी

Source : http://notestomyself.wordpress.com/2005/12/02/manzil-na-de-charag-na-de-by-jagjit-singh-and-chitra-singh/

Wednesday, March 17, 2010

अपने हाथों की लकीरों में बसाले मुझको

अपने हाथों की लकीरों में बसाले मुझको
मैं हूँ तेरा नसीब अपना बना ले मुझको

मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के मानी
ये तेरी सादादिली मार ना डाले मुझको

मैं समंदर भी हूँ मोती भी हूँ ग़ोताज़न भी
कोई भी नाम मेरा लेके बुलाले मुझको

तूने देखा नहीं आईने से आगे कुछ भी
ख़ुदपरस्ती में कहीं तू ना गँवाले मुझको

कल की बात और है मैं अब सा रहूँ या ना रहूँ
जितना जी चाहे तेरा आज सताले मुझको

ख़ुद को मैं बाँट ना डालूँ कहीं दामन-दामन
कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको

मैं जो काँटा हूँ तो चल मुझ से बचाकर दामन
मैं हूँ गर फूल तो जूड़े में सजाले मुझको

मैं खुले दर के किसी घर का हूँ सामाँ प्यारे
तू दबे पाँव कभी आके चुराले मुझको

तर्क-ए-उल्फ़त की क़सम भी कोई होती है क़सम
तू कभी याद तो कर भूलने वाले मुझको

वादा फिर वादा है, मैं ज़हर भी पी जाऊं कतील
शर्त ये है कोई बाहों में संभाले मुझको

--कतील शिफाई

Source : http://www.urdupoetry.com/qateel04.html

अब चलो ये भी ख़ता की जाए

अब चलो ये भी ख़ता की जाए
दिल के दुशमन से वफ़ा की जाए

वो ही आए न बहारें आईं
क्या हुई बात पता की जाए

है इसी वक़्त ज़रूरत उसकी
बावुज़ू हो के दुआ की जाए

ज़ुल्म भरपूर किए हैं तूने
अब अनायत भी ज़रा की जाए

दर्दे-दिल है ये मज़ा ही देगा
दर्दे-सर हो तो दवा की जाए

--गोविन्द गुलशन

Sunday, March 14, 2010

दिल का झुकना बहुत ज़रूरी है

दिल का झुकना बहुत ज़रूरी है
सर झुकाने से रब नहीं मिलता

--सुदर्शन शजर

वो सवा याद आये भुलाने के बाद

वो सवा याद आये भुलाने के बाद
जिंदगी बढ़ गयी ज़हर खाने के बाद
--खुमर बरबनकवी

[सवा = ज्यादा]

हमारे ख़्वाब थे वो बुन रही थी

हमारे ख़्वाब थे वो बुन रही थी
अँधेरी रात तारे चुन रही थी
मैं आँखों से बयाँ गम रहा था
वो आँखों ही से बैठी सुन रही थी
--अज्ञात

Saturday, March 13, 2010

मैं साँसे भी लुटा सकता हूँ

मैं साँसे भी लुटा सकता हूँ उसके लिए मगर
वो मेरे हर वादे को सरकारी समझती है
--राहत इंदोरी

Tuesday, March 9, 2010

न शिकायतें न सवाल है

न शिकायतें न सवाल है, कोई आसरा, न मलाल है
तेरी बेरुखी भी कमाल थी, मेरा ज़ब्त भी कमाल है
--अज्ञात

Sunday, March 7, 2010

तेरी तलब में जला दिए आशियाने तक

तेरी तलब में जला डाले आशियाने तक
कहाँ रहूँ तेरे दिल में घर बनाने तक
--अहमद फराज़

दुआ करो के सलामत रहे मेरी हिम्मत

दुआ करो के सलामत रहे मेरी हिम्मत
ये एक चिराग कईं आंधियों पे भारी है
--अज्ञात

Saturday, March 6, 2010

के ख़ुशी से मर न जाते अगर ऐतबार होता

ये न थी हमारी क़िस्मत के विसाल-ए-यार होता
अगर और जीते रहते यही इन्तज़ार होता

तेरे वादे पर जिये हम तो ये जान झूठ जाना
के ख़ुशी से मर न जाते अगर ऐतबार होता

कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर-ए-नीमकश को
ये ख़लिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता
[तीर-ए-नीमकश=half drawn arrow, ख़लिश=pain ]

कहूँ किस से मैं के क्या है, शब-ए-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता
[शब-ए-गम=गम की रात]

हुए मर के हम जो रुसवा, हुए क्योँ न ग़र्क़-ए-दरिया
न कभी जनाज़ा उठता, न कहीं मज़ार होता
[गर्क=drown/sink]

--मिरज़ा ग़ालिब

Source : http://www.urdupoetry.com/ghalib61.html

अपनी जिंदगी दे कर खरीद लेते

खरीद सकते तो उसे अपनी जिंदगी दे कर खरीद लेते फ़राज
पर कुछ लोग कीमत से नही किस्मत से मिला करते है !!!!
--अहमद फ़राज़

Friday, March 5, 2010

गम नहीं शिकवा नहीं, अफ़सोस में दिल रोया है

हमारे एक और दोस्त, इफ्त ने भी शायरी का शौक पाला है, सो उनका एक गीत आपकी नज़र कर रहा हूँ
ज़रा गौर फरमाइयेगा


गम नहीं, शिकवा नहीं, अफ़सोस मे दिल रोया है,
कितना बदनसीब है वो, पाकर हमे खोया है |

उसके लिए दुनिया की दलीलों को झुटा देते,
हम ऐब भी उसके तमगो से सजा देते,
फिर दिल क्यों न उसे देते खेलने के वास्ते,
हमने फरेब भी जिसका, गज़लों में संजोया है |
कितना बदनसीब है वो, पाकर हमे खोया है |

वो खेल ज़माने भर के मेरे दिल के साथ करता,
नफरत भरी नज़र से मुस्कुरा के बात करता,
दर्द मेरे ज़ज्बात का वो कैसे समझता भला,
चाहत को जिसने नफरत के, धागों से पिरोया है |
कितना बदनसीब है वो, पाकर हमे खोया है |

हम जिनके ख्यालो में दिन रात हुए थे गुम
कहते है हमको ज्यादा सोचा न करो तुम,
उल्फत में किसी की जगना "इफ्त" वो क्या जाने,
बेफिक्र होके हर रात जो, आराम से सोया है|
कितना बदनसीब है वो, पाकर हमे खोया है |

--इफ्त

करूँ तो किस के लिए आखिर मलाल उसका

करूँ तो किस के लिए आखिर मलाल उसका
उसे नहीं तो मुझे भी नहीं है खयाल उसका

मेरी वफ़ा ने बनाया है बेवफा उसको
किसी अदा पे नहीं है कमाल उसका

मेरे नसीब की ये भी तो खुशनसीबी है
के मुझ को देख कर सब पूछते हैं हाल उसका

यही दुआ मैं करूँ हर बरस के पहले रोज
के मेरे बगैर न गुज़रे कोई भी साल उसका

मेरे आरुज़ को उसके नसीब में लिख दे
खुदा-ए-पाक मुझे सौंप दे ज़वाल उसका

--अज्ञात

कामयाब रिश्तों में भी नहीं मिलती है मोहब्बत

कामयाब रिश्तों में भी नहीं मिलती है मोहब्बत
के दिल मिलते हैं खयालातो के मिलने से
--अर्घ्वान रब्भी

मुझे मालूम है कि मैं उसके बिना जी नहीं सकता फराज़

मुझे मालूम है कि मैं उसके बिना जी नहीं सकता फराज़

उसका भी यही हाल है मगर किसी और के लिए

--अहमद फराज़

Thursday, March 4, 2010

इस का ग़म है कि बहुत देर में बर्बाद किया

सोज़-ए-ग़म देके मुझे उस ने ये इर्शाद किया
जा तुझे कश-मा-कश-ए-दहर से आज़ाद किया

वो करें भी तो किन अल्फ़ाज़ में तेरा शिकवा
जिन को तेरी निगाह-ए-लुत्फ़ ने बर्बाद किया

दिल की चोटों ने कभी चैन से रहना ना दिया
जब चली सर्द हवा मैं ने तुझे याद किया

ऐसे में मैं तेरे तज-तकल्लुफ़ पे निसार
फिर तो फ़र्माये वफ़ा आप ने इर्शाद किया

इस का रोना नहीं क्यों तुमने किया दिल बर्बाद
इस का ग़म है कि बहुत देर में बर्बाद किया

इतना मासूम हूँ फ़ितरत से, कली जब चटकी
झुक के मैं ने कहा, मुझसे कुछ इरशाद किया

मेरी हर साँस है इस बात की शाहिद-ए-मौत
मैं ने हर लुत्फ़ के मौक़े पे तुझे याद किया

मुझको तो होश नहीं तुमको ख़बर हो शायद
लोग कहते हैं कि तुमने मुझे बर्बाद किया

वो तुझे याद करे जिसने भुलाया हो कभी
हमने तुझ को ना भुलाया ना कभी याद किया

कुछ नहीं इस के सिवा 'जोश' हरीफ़ों का कलाम
वस्ल ने शाद किया हिज्र ने नाशाद किया

--जोश मलिहाबादी

[sard=cold]
[taj-takalluf=to give up/sacrifice formality/reticence; irshaad=to show the way]
[fitarat=nature; irashaad=to speak]
[shaahid-e-maut=witness of death]
[hariifo.n=rivals; kalaam=words/conversation; vasl=union/meeting]
[shaad=happy; hijr=separation; nashaad=unhappy]

Source : http://www.urdupoetry.com/josh03.html

ले चला जान मेरी रूठ के जाना तेरा

ले चला जान मेरी रूठ के जाना तेरा
ऐसे आने से तो बेहतर था ना आना तेरा

अपने दिल को भी बताऊँ ना ठिकाना तेरा
सब ने जाना जो पता एक ने जाना तेरा

तू जो ऐ ज़ुल्फ़ परेशान रहा करती है
किस के उजड़े हुए दिल में है ठिकाना तेरा

ये समझ कर तुझे ऐ मौत लगा रखा है
काम आता है बुरे वक़्त में आना तेरा

अपनी आँखों में भी कौँध गई बिजली सी
हम ना समझे कि ये आना है कि जाना तेरा

दाग को यूँ वो मिटाते हैं ये फ़र्माते हैं
तू बदल डाल हुआ नाम पुराना तेरा

--दाग देहलवी

[बिजली कौंधना = strike/flash of lightning]

Source : http://www.urdupoetry.com/daag29.html

सब पे दीवाने की नज़र भी नहीं

सब पे दीवाने की नज़र भी नहीं
सब से दीवाना बेखबर भी नही

जीने वाले !! तो जितनी समझे हैं
ज़िंदगी उतनी मोतबर भी नही

मुन्तजिर का अजीब आलम है
अब उसे फ़िक्र-ए-मुन्तजिर भी नही

मुतमईन हो गए बहार में यू
जैसे एहसास-ए-बाल-ओ-पर भी नहीं

दास्ताँ-ए-गम-ए-हयात न पूछ
मुख़्तसर भी है, मुख़्तसर भी नहीं

मेरी दीवानगी वहाँ पहुंची
जिस जगह कोई हमसफ़र भी नही

जिस्म एक घर है रूह का 'बेकल'
देखिये उसका जैसे घर भी नहीं

--बेकल उत्साही

मोतबर=reliable;
मुन्तजिर=one who is waiting;
मुन्तज़र=one who is being waited for;
हयात=life

Monday, March 1, 2010

तुम हो के मुद्दतों बाद भी मेरे न हो सके

तुम हो के मुद्दतों बाद भी मेरे न हो सके
मैं हू के तेरी इक बात पे दीवाना हो गया
--अज्ञात

वो आईने को भी हैरत में डाल देता है

वो आईने को भी हैरत में डाल देता है
खुदा किसी किसी को ये कमाल देता है
--अज्ञात