Wednesday, December 9, 2009

शोला था जल-बुझा हूँ हवायें मुझे ना दो

शोला था जल-बुझा हूँ हवायें मुझे ना दो
मैं कब का जा चुका हूँ सदायें मुझे ना दो

जो ज़हर पी चुका हूँ तुम्हीं ने मुझे दिया
अब तुम तो ज़िन्दगी की दुआयें मुझे ना दो

ऐसा कहीं ना हो के पलटकर ना आ सकूँ
हर बार दूर जा के सदायें मुझे ना दो

कब मुझ को ऐतेराफ़-ए-मुहब्बत ना था 'फ़राज़'
कब मैं ने ये कहा था सज़ायें मुझे ना दो

--अहमद फ़राज़


Source : http://www.urdupoetry.com/faraz07.html

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