गुलशन की फक़त फूलों से नहीं, काँटों से भी ज़ीनत होती है
जीने के लिए इस दुनिया में, गम की भी ज़रूरत होती है
ए वाइज़-ए-नादाँ करता है तू एक क़यामत का चर्चा
यहां रोज़ निगाहें मिलती हैं, यहां रोज़ क़यामत होती है
वो पुरसिश-ए-गम को आये हैं, कुछ कह ना सकूं, चुप रह ना सकूं
खामोश रहूँ तो मुश्किल है, कह दूं तो शिकायत होती है
[पुरसिश : Inquiry, To Show Concern (About)]
करना ही पडेगा ज़प्त-ए-आलम पीने ही पड़ेंगे ये आंसू
फरयाद-ओ-फुगाँ से ए नादाँ, तौहीन-ए-मुहब्बत होती है
[फुगाँ=Clamor, Cry Of Distress, Cry Of Pain, Lamentation, Wail]
जो आके रुके दामन पे 'सबा' वो अश्क नहीं है पानी है
जो अश्क ना छलके आंखों से, उस अश्क की कीमत होती है
गुलशन की फकत फूलों से नहीं, कांटो से भी ज़ीनत होती है,
जीने के लिये इस दुनिया में, गम की भी ज़रूरत होती है !
--सबा अफ़गानी
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Sunday, November 28, 2010
गुलशन की फक़त फूलों से नहीं, काँटों से भी ज़ीनत होती है
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