लोग उसे समझाने निकले
पत्थर से टकराने निकले
बात हुई थी दिल से दिल की
गलियों में अफ़साने निेकले
याद तुम्हारी आई जब तो
कितने छुपे खज़ाने निकले
पलकों की महफि़ल में सजकर
कितने ख्वाब सुहाने नि्कले
आग लगी देखी पानी में
शोले उसे बुझाने निकले
दीवाने की कब्र खुदी तो
कुछ टूटे पैमाने निकले
सूने-सूने उन महलों से
भरे-भरे तहखाने निकले
'श्या्म’ उमंगें लेकर दिल में
महफि़ल नई सजाने निकले
--श्याम सखा श्याम
Source : http://gazalkbahane.blogspot.com/2009/11/blog-post.html
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