Saturday, October 29, 2016

हम अपने आप से कुछ इस तरह हुए रुखसत

उसी की तरहा मुझे सारा ज़माना चाहे ,
वो मेरा होने से ज्यादा मुझे पाना चाहे ?.

मेरी पलकों से फिसल जाता है चेहरा तेरा ,
ये मुसाफिर तो कोई और ठिकाना चाहे .

एक बनफूल था इस शहर में वो भी ना रहा,
कोई अब किस के लिए लौट के आना चाहे .

ज़िन्दगी हसरतों के साज़ पे सहमा-सहमा,
वो तराना है जिसे दिल नहीं गाना चाहे .

हम अपने आप से कुछ इस तरह हुए रुखसत,
साँस को छोड़ दिया जिस तरफ जाना चाहे .

--Unknown...