अपने साये से भी अश्क़ों को छुपा कर रोना
जब भी रोना हो चराग़ों को बुझा कर रोना
हाथ भी जाते हुये वो तो मिला कर ना गया
मैने चाहा जिसे सीने से लगा कर रोना
तेरे दीवाने का क्या हाल किया है ग़म ने
मुस्कुराते हुये लोगों में भी जा कर रोना
लोग पढ़ लेते हैं चेहरे पे लिखीं तहरीरें
इतना दुशवार है लोगों से छुपा कर रोना
--निसार तरीन जाज़िब
Source : http://www.urdupoetry.com/jazib01.html
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