वैसे कहते हैं कि हर भाषा कि अपनी एक खास बात होती है, अगर वो समझ में आये, तो खूब आनंद देती है, और अगर न आये, तो सिर्फ एक मजाक बन के रह जाती है
एक जगह मुशायरा हो रहा था, तो एक हिंदी कवि से रहा नहीं गया, पहुँच गए stage पर अपना शेर सुनाने को
न गिला करता हूँ, न शिकवा करता हूँ
तुम सलामत रहो, यही दुआ करता हूँ
अब एक मद्रासी कवि कैसे चुप रहते, वो भी कहने लगे मुझे भी शेर सुनाना है
न गीला करता हूँ, न सूखा करता हूँ
तुम साला मत रहो, यही दुआ करता है
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Saturday, March 27, 2010
एक हास्यसपद वाकया
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nice...
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