अब भला छोड़ कर घर क्या करते
शाम के वक्त सफर क्या करते
तेरी मसरूफियतें जानते थे
अपने आने की खबर क्या करते
(मसरूफियतें : Engagements)
जब सितारे ही नहीं मिल पाए
ले के हम शम्स-ओ-कमर क्या करते
(शम्स-ओ-कमर : Sun And The Moon)
वो मुसाफिर ही खुली धुप का था
साये फैला के शजर क्या करते
(शजर : Tree)
ख़ाक ही अव्वल-ओ-आखिर थी
कर के ज़र्रे को गौहर क्या करते
(ख़ाक : Dust;
अव्वल-ओ-आखिर : In The Beginning And The End;
ज़र्रे : Particles;
गौहर : Jewels)
राय पहले से ही बना ली तूने
दिल में अब हम तेरे घर क्या करते
इश्क ने सारे सलीके बख्शे
हुस्न से कसब-ए-हुनर क्या करते
(सलीके : Etiquettes; Kasb-E-Hunar : ?)
--परवीन शाकिर
If you know, the author of any of the posts here which is posted as Anonymous.
Please let me know along with the source if possible.
Thursday, April 8, 2010
अब भला छोड़ कर घर क्या करते
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
This is by Parveen Shakir (Pakistani poetess)
ReplyDeleteListen to it at http://www.youtube.com/watch?v=su_SYVa3OfA by Tina Sani
Thanks Abhishek for letting us know.
ReplyDeleteUpdated both the writer's name and video.
Thanks Yogesh! The writer name should be परवीन शाकिर (Parveen Shakir) and not प्रवीण शकीर (Praveen Shakeer).
ReplyDeleteCorrected it Abhishek.
ReplyDelete