Sunday, May 16, 2010

नहीं कि अपना ज़माना भी तो नहीं आया

नहीं कि अपना ज़माना भी तो नहीं आया
हमें किसी से निभाना भी तो नहीं आया

जला के रख लिया हाथों के साथ दामन तक
तुम्हें चराग बुझाना भी तो नहीं आया

नये मकान बनाए तो फासलों की तरह
हमें ये शहर बसाना भी तो नहीं आया

वो पूछता था मेरी आँख भीगने का सबब
मुझे बहाना बनाना भी तो नहीं आया

वसीम देखना मुड मुड के वो उसी की तरफ
किसी को छोड़ के जाना भी तो नहीं आया

--वसीम बरेलवी

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