दूरी को अपनी बढ़ाना नहीं था
यूँ प्यार को आज़माना नहीं था
उसने न टोका न दामन ही थामा
रुकने का कोई बहाना नहीं था
चादर पे ख़ुशबू थी उसके बदन की
जागे तो उसका ठिकाना नहीं था
दामन पर उसके कई दाग आए
आँसू उसे यूँ, गिराना नहीं था
उल्फत में कैसे वफ़ा मिलती "श्रद्धा"
किस्मत में जब ये खज़ाना नहीं था
--श्रद्धा जैन
Source : http://bheegigazal.blogspot.com/2010/04/blog-post_25.html
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