तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किस का था
ना था रक़ीब तो आख़िर वो नाम किस का था
वो क़त्ल कर के हर किसी से पूछते हैं
ये काम किस ने किया है ये काम किस का था
वफ़ा करेंगे निभायेंगे बात मानेंगे
तुम्हें भी याद है कुछ ये कलाम किस का था
रहा ना दिल में वो बे-दर्द और दर्द रहा
मुक़ीम कौन हुआ है मक़ाम किस का था
ना पूछ-पाछ थी किसी की ना आव-भगत
तुम्हारी बज़्म में कल एहतमाम किस का था
हमारे ख़त के तो पुर्ज़े किये पढ़ा भी नहीं
सुन जो तुम ने बा-दिल वो पयाम किस का था
इंहीं सिफ़ात से होता है आदमी मशहूर
जो लुत्फ़ आप ही करते तो नाम किस का था
गुज़र गया वो ज़माना कहें तो किस से कहें
ख़याल मेरे दिल को सुबह-ओ-शाम किस का था
हर एक से कहते हैं क्या "दाग" बेवफ़ा निकला
ये पूछे इन से कोई वो ग़ुलाम किस का था
--दाग देहलवी
Source : http://www.urdupoetry.com/daag01.html
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Tuesday, December 7, 2010
हर एक से कहते हैं क्या "दाग" बेवफ़ा निकला
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