खता मैंने कोई भारी नहीं की
अमीर-ए-शहर से यारी नहीं की
(अमीर-ए-शहर=powerful people of the city)
किसी मनसब किसी ओहदे की खातिर
कोई तदबीर बाजारी नहीं की
(मनसब : exalted position, ओहदे : position of influence, तदबीर : efforts)
बस इतनी बात पर दुनिया खफा है
के मैंने तुझ से गद्दारी नहीं की
मिरी बातों में क्या तासीर होती
कभी मैंने अदाकारी नहीं की
तासीर=effect
मिरे ऐबों को गिनवाया तो सब ने
किसी ने मेरी गम-ख्वारी नहीं की
--ताबिश मेहंदी
Source : http://aligarians.com/2007/08/khataa-maine-koii-bhaarii-nahiin-kii/
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Sunday, November 28, 2010
खता मैंने कोई भारी नहीं की
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अच्छी ग़ज़ल है। शब्दार्थ के कारण सहज ग्राह्य हुआ।
ReplyDeleteबस इतनी बात पर दुनिया खफा है
ReplyDeleteके मैंने तुझ से गद्दारी नहीं की ..
लाजवाब ग़ज़ल ... बेहतरीन शेर ... मज़ा आ गया ..