Sunday, November 28, 2010

खता मैंने कोई भारी नहीं की

खता मैंने कोई भारी नहीं की
अमीर-ए-शहर से यारी नहीं की
(अमीर-ए-शहर=powerful people of the city)

किसी मनसब किसी ओहदे की खातिर
कोई तदबीर बाजारी नहीं की
(मनसब : exalted position, ओहदे : position of influence, तदबीर : efforts)

बस इतनी बात पर दुनिया खफा है
के मैंने तुझ से गद्दारी नहीं की

मिरी बातों में क्या तासीर होती
कभी मैंने अदाकारी नहीं की
तासीर=effect

मिरे ऐबों को गिनवाया तो सब ने
किसी ने मेरी गम-ख्वारी नहीं की

--ताबिश मेहंदी

Source : http://aligarians.com/2007/08/khataa-maine-koii-bhaarii-nahiin-kii/

2 comments:

  1. अच्छी ग़ज़ल है। शब्दार्थ के कारण सहज ग्राह्य हुआ।

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  2. बस इतनी बात पर दुनिया खफा है
    के मैंने तुझ से गद्दारी नहीं की ..

    लाजवाब ग़ज़ल ... बेहतरीन शेर ... मज़ा आ गया ..

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