हर बशर बुझा बुझा क्यूँ है
कारवां मोड़ पर रुका रुका क्यूँ है
लिखते लिखते ज़रूर रोया है कोई
खत का मज़मून मिटा मिटा क्यूँ है
उसने लौटा तो दी किताब मेरी
एक पन्ना मगर मुड़ा मुड़ा क्यूँ है
--अज्ञात
कारवां मोड़ पर रुका रुका क्यूँ है
लिखते लिखते ज़रूर रोया है कोई
खत का मज़मून मिटा मिटा क्यूँ है
उसने लौटा तो दी किताब मेरी
एक पन्ना मगर मुड़ा मुड़ा क्यूँ है
--अज्ञात
No comments:
Post a Comment