रूह बेचैन दिल उदास बहुत है
बुझ गई है शमा-ए-उम्मीद लेकिन आस बहुत है
ये दर्द-ए-जुदाई, ये हिजर के लम्हे
ये फिराक़ का मौसम मुझे रास बहुत है
समंदर के किनारे बैठा हूँ मगर फिर भी
सूखे हैं मेरे होंट और प्यास बहुत है
आएगा मेरी कब्र पे वो फूल चढाने
ये यकीन बहुत है, ये क़यास बहुत है
दिया जब गम तू कुछ ना सोचा उसने
उजड गये हम तो उसे अहसास बहुत है
--अज्ञात
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