Sunday, August 22, 2010

इस शहर क लोगों से वफ़ा माँग रहा हूँ

इस शहर के लोगों से वफ़ा माँग रहा हूँ
और सोच मे डूबा हूँ के क्या माँग रहा हूँ

ये सब ने सज़ा रखा है जो अपनी जबीन पर
मैं दिल पे भी इक ऐसा निशाँ माँग रा हूँ

इस सूखे हुए खेत का जो रंग बदल दे
उस रहम की बारिश की दुआ माँग रा हूँ

पत्थर का तलबगार हूँ शीशे क नगर मे
क्या माँग रहा हूँ मैं कहाँ माँग रहा हूँ

तू बाँध के जुल्फों से मुझे दिल मे बिठा ले
मुजरिम हूँ तेरा तुझ से सज़ा माँग रहा हूँ

पहलू में तेरे सिर हो मेरा, मौत जब आए
बस इतना करम वक़्त-ए-नज़ा माँग रहा हूँ

मैं कौन हूँ, क्या हूँ, मैं यहाँ किस लिए आया
मैं खुद से खुद अपना ही पता माँग रहा हूँ

दो लफ्ज़ मेरे नाम भी लिख दे कभी "असीम"
मैं तुझ से वफाओं का सिला माँग रहा हूँ

--असीम कौमी

3 comments:

  1. अपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
    कल (23/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
    और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।

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  2. अपनी पोस्ट के प्रति मेरे भावों का समन्वय
    कल (23/8/2010) के चर्चा मंच पर देखियेगा
    और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा।
    http://charchamanch.blogspot.com

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