Thursday, March 25, 2010

जल जल कर राख का ढेर बन जाने का दुःख नहीं

जल जल कर राख का ढेर बन जाने का दुःख नहीं
सदमा तो ये है पैरों में रौंदा जा रहा हूँ
--अज्ञात

2 comments:

  1. वाह! क्या खूब प्रस्तुत किया है!!

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    हिन्दी में विशिष्ट लेखन का आपका योगदान सराहनीय है. आपको साधुवाद!!

    लेखन के साथ साथ प्रतिभा प्रोत्साहन हेतु टिप्पणी करना आपका कर्तव्य है एवं भाषा के प्रचार प्रसार हेतु अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें. यह एक निवेदन मात्र है.

    अनेक शुभकामनाएँ.

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