Sunday, September 12, 2010

जाने फिर क्यूँ हम उसी की आरज़ू करते रहे

उम्र भर जिस आईने की जुस्तजू करते रहे
वो मिला तो हम नज़र से गुफ़्तगू करते रहे
[जुस्तजू=Desire, Inquiry, Quest, Search]

ज़ख़्म पर वो ज़ख़्म देते ही रहे दिल को मगर
हम भी तो कुछ कम न थे हम भी रफ़ू करते रहे

बुझ गए दिल में हमारे जब उम्मीदों के चराग़
रौशनी जुगनू बहुत से चार सू करते रहे
[चार सू=चारों ओर]

वो नहीं मिल पाएगा मालूम था हमको मगर
जाने फिर क्यूँ हम उसी की आरज़ू करते रहे

आपने तहज़ीब के दामन को मैला कर दिया
आप दौलत के नशे में तू ही तू करते रहे

ख़ुशबुएँ पढ़कर नमाज़ें हो गईं रुख़्सत मगर
फूल शाख़ों पर ही शबनम से वुज़ू करते रहे

आईने क्या जानते हैं क्या बताएँगे मुझे
आईने ख़ुद नक़्ल मेरी हू-ब-हू करते रहे...

--अज्ञात

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