Saturday, December 25, 2010

कोई शाम फिर, घर भी जाना था लेकिन ...

कोई शाम फिर, घर भी जाना था लेकिन ...
ये आवारगी तो, बहाना था लेकिन ...

महब्बत में माना, कि गम तो बहुत थे ...
महब्बत में कैसा.. ज़माना था लेकिन ...

उसे सब्र कि.. इंतिहा देखनी थी ...
मुझे ज़ुल्म को.. आज़्माना था लेकिन ...

मैं खामोश फिर, महफिलों में हुआ था ...
मेरा दर्द फिर, शायराना था लेकिन ...

मेरे बारिशों से, न थे राब्ते पर ...
शबो-रोज़ का.. आना जाना था लेकिन ...

[राब्ते=relations]

पुरानी दवा तो ज़हर की तरह है ...
मेरा मर्ज़ भी तो पुराना था लेकिन ...

दुआ, चंद सिक्के, दो रोटी से खुश थे ...
फकीरों को हासिल खज़ाना था लेकिन ...

मुक़द्दर कि चालों से वाकिफ था हर दम ...
मुक़द्दर को "शाहिक", हराना था लेकिन ...

--शाहिक अहमद
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