किसी ने चाहा था लड़कपन में तुमको
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो
मन ही मन अपना बनाया था तुमको
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो
उसे न आता था प्यार जताना
उसे न आता था तुमको मनाना
इसलिए शायद सताया था तुमको
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो
दिल ही दिल में अपने ख्वाब बुनता था
सपनो को कलियाँ तेरे लिए चुनता था
कभी न लेकिन बताया था तुमको
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो
रातों को उठकर बिस्तर से जागता था
वो तुम्हे चाहता था तुम्हे मांगता था
दुनिया से रूठकर भी मनाया था तुमको
तुम्हे तो शायद याद भी न हो
सोचता था क्या होगा अंजाम मेरा
कोपियों पे लिखता था वो नाम तेरा
किताबों मेंफूल सा सजाया था तुमको
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो
पीछे कि सीट से क्लास में बैठकर
प्यार से वो तुमको देखता था अक्सर
चाहा मगर गले से लगा न पाया तुमको
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो
बचपन कि वो यादें अब भी आती है
बैचैन करती हैं मुजको रुलाती हैं
सोचा बहत ''तोमर'' भुला न पाया तुमको
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो....
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो...
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो...
डॉ. विकास तोमर.
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Monday, March 29, 2010
तुम्हे तो शायद अब याद भी न हो...
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kya pata yaad hi ho...
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