Sunday, December 26, 2010

एक था और एक थी,

एक था और एक थी,
था ने थी से मोहब्बत की
अफसाना हो गया
दुश्मन सारा ज़माना हो गया
गली गली उन दो नामो के चर्चे
और दीवार दीवार पर उन्ही दो नामो के पर्चे
थी बेचारी क्या करे
जिए के मरे
कह न सकी, रह न सकी

मर गयी, एक बहुत लंबी यात्रा एक हिचकी में तय कर गयी
था को न जाने क्या हो गया
उसे लगा जैसे सब कुछ खो गया
थी के वियोग में बेसुध बीमार सा रहने लगा
ज़माना उसे पागल कहने लगा
कभी कभी वह एकांत में चला जाता
धरती के कागज़ पर कोमल कोमल उँगलियों से
थी का नाम लिखता और मिटाता
और मुंह से उसे के गीत गुनगुनाता
और लोगो से पत्थरों की बौछार पाता
कहानी समाप्त हुई, और संयोग से
इस कहानी को एक फ़िल्मी producer ने फिल्मा दिया
अजीब गज़ब ढा दिया
लोग बेतहाशा फिल्म देखने आने लगे
टिकेट पाने के लिए लंबे लंबे queue लगाने लगे
कलाकारों ने भी भूमिका कुछ ऐसी निभाई
विक्स आँखों में लगा कर आंसुओं की धरा बहाई
जनता को फिल्म ज़रूरत से ज्यादा पसंद आई
परिणाम तय हुआ ऐसा,
फिल्म को नाम मिला, producer को पैसा
कलाकारों को मिला सम्मान सरकार को पुरस्कार
सोचता हूँ कैसा जामना आ गया
नाटक को पुरस्कार और हकीकत पर पत्थरों की बौछार
ऐ युग तुझे मेरा सौ सौ नमस्कार

--अज्ञात

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