Saturday, April 17, 2010

सोचना ही फ़िज़ूल है शायद

सोचना ही फ़िज़ूल है शायद
जिंदगी एक भूल है शायद

हर नज़ारा दिखाई दे धुंधला
मेरी आँखों पे धुल है शायद

इक अजब सा सुकून है दिल में
आपका ग़म क़ुबूल है शायद

दोस्ती प्यार दुश्मनी नफरत
यूं लगे सब फ़िज़ूल है शायद

किस कदर चुभ रहा हूँ मैं
मेरे दामन में फूल है शायद

--राजेन्द्र टोकी

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