Saturday, June 5, 2010

कभी-कभी दुआओं का जवाब आता है

कभी-कभी दुआओं का जवाब आता है
और कुछ इस तरह कि बेहिसाब आता है


ढूँढते रहते हैं रात-दिन जो फुरसत के रात-दिन
हो जाते हैं पस्त जब पर्चा रंग-ए-गुलाब आता है
(पर्चा रंग-ए-गुलाब = pink slip, नौकरी खत्म का आदेश )


यूँ तो तेल निकालो तो तेल निकलता नहीं है
और अब निकला है तो ऐसे जैसे सैलाब आता है
(सैलाब = बाढ़, flood)


चश्मा बदल-बदल कर कई बार देखा
हर बार नज़रों से दूर नज़र सराब आता है
(सराब = मरीचिका, mirage)


पराए भी अपनों की तरह पेश आते हैं 'राहुल'
वक़्त कभी-कभी ऐसा भी खराब आता है

--राहुल उपाध्याय

सिएटल | 425-898-9325
4 जून 2010


Source : http://mere--words.blogspot.com/2010/06/blog-post_04.html

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