मां-बाप के लिये कभी , कुछ ना करे फिर भी ।
मां-बाप की आँखों का , तारा है आदमी ।।
बेटे की जिद के आगे , धृतराष्ट्र झुक गये ।
अपने ही अजीजों से , हारा है आदमी ॥
अपनों का कत्ल करके , बादशाह बन गया ।
मक्कारी में बुलंद सितारा है आदमी ॥
इक दूसरे के खून का , प्यासा कभी कभी ।
इक दूसरे का गम में सहारा है आदमी ॥
बरबाद कभी बाढ़ में , तूफान में कभी ।
कुदरत के आगे कितना , बेचारा है आदमी ॥
गरमी कभी ठंडक कभी ,और जलजला कभी ।
बरसात का , हालात का , मारा है आदमी ॥
फरमाइशें लम्बी हैं , पूरी नहीं होतीं ।
बीबी की नजर में तो , नकारा है आदमी ॥
उनकी नजर में वोट हैं , इंसान नही हैं ।
सियासत में आदमी का , चारा है आदमी ||
--अजय कुमार
Source : http://gatharee.blogspot.com/2010/08/blog-post.html
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Monday, August 23, 2010
क्या आदमी है
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योगेश जी आपके पोस्ट पर अपनी रचना देखकर अच्छा लगा ।आपने मेरा नाम और ब्लाग का पता भी दिया है ,इसके लिये धन्यवाद ।
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