मुझ से मिलती हैं तो मिलती हैं चुरा कर आँखे
फिर वो किसके लिए रखती है सज़ा कर आँखें
मैं उन्हें देखता रहता हूँ जहाँ तक देखूं
एक वो हैं, के जो देखे ना, उठा कर आँखें
उस जगह आज भी बैठा हूँ अकेला यारो
जिस जगह छोड़ गये थे वो मिला कर आँखें
मुझ से नज़रें वो अक्सर चुरा लेता है सागर
मैंने कागज़ पे भी देखी हैं बना कर आँखें
--सागर
मुझ से मिलती हैं तो मिलती हैं चुरा कर आँखे
ReplyDeleteफिर वो किसके लिए रखती है सज़ा कर आँखें
मैं उन्हें देखता रहता हों जहाँ तक देखूं
एक वो हैं के जो देखे ना उठा कर आँखें
बहुत सुन्दर...
classic thaught
ReplyDeleteमुझ से मिलती हैं तो मिलती हैं चुरा कर आँखे
ReplyDeleteफिर वो किसके लिए रखती है सज़ा कर आँखें
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....