Monday, March 22, 2010

मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले

मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले
उसे समझने का कोई तो सिल_सिला निकले

किताब-ए-माज़ी के पन्ने उलट के देख ज़रा
ना जाने कौन सा सफ़ाह मुड़ा हुआ निकले

जो देखने में बहुत ही क़रीब लगता है
उसी के बारे में सोचो तो फ़ासला निकले

--वसीम बरेलवी


Source : http://www.urdupoetry.com/wbarelvi05.html

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