मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले
उसे समझने का कोई तो सिल_सिला निकले
किताब-ए-माज़ी के पन्ने उलट के देख ज़रा
ना जाने कौन सा सफ़ाह मुड़ा हुआ निकले
जो देखने में बहुत ही क़रीब लगता है
उसी के बारे में सोचो तो फ़ासला निकले
--वसीम बरेलवी
Source : http://www.urdupoetry.com/wbarelvi05.html
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