Monday, August 9, 2010

कभी दीवार कभी दर की बात करता था

कभी दीवार कभी दर की बात करता था
वो अपने उजड़े हुए घर की बात करता था

मैं ज़िक्र जब कभी करता था आसमानों का;
वो अपने टूटे हुए पर की बात करता था

ना थी लकीर कोई उसके हाथ पर यारों
वो फिर भी अपने मुक़द्दर की बात करता था

जो एक हिरनी को जंगल में कर गया घायल
हर इक शजर उसी नश्तर की बात करता था

बस एक अश्क था मेरी उदास आँखों में
जो मुझसे सात समंदर की बात करता था

--ज्ञान प्रकाश विवेक

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