Tuesday, May 4, 2010

अपनी कलम को बेच दिया और लिखने का फन बेच दिया

अपनी कलम को बेच दिया और लिखने का फन बेच दिया
उसको माली कैसे कह दूं जिसने गुलशन बेच दिया

भाई के सर पर दुश्मन ने कैसा सच्चा हाथ रखा
आँगन में दीवार कि खातिर आधा आँगन बेच दिया

दुनिया ने क्या ज़ुल्म किये हैं इसका कोई ज़िक्र नहीं
पर ये चर्चा गली गली है बेवा ने तन बेच दिया

न मन पर कुछ बोझ रखा और न तन पर कुछ भार सहा
बीवी ने फरमाइश की तो माँ का कंगन बेच दिया

--अज्ञात

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