मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता
नई ज़मीं नया आसमाँ नहीं मिलता
नई ज़मीं नया आसमाँ भी मिल जाये
नये बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता
वो तेग़ मिल गई जिस से हुआ है क़त्ल मेरा
किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता
वो मेरा गाँव है वो मेरे गाँव के चूल्हे
कि जिन में शोले तो शोले धुआँ नहीं मिलता
जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यूँ
यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलता
खड़ा हूँ कब से मैं चेहरों के एक जंगल में
तुम्हारे चेहरे का कुछ भी यहाँ नहीं मिलता
--कैफी आज़मी
Source : http://www.urdupoetry.com/kaifi07.html
If you know, the author of any of the posts here which is posted as Anonymous.
Please let me know along with the source if possible.
Saturday, November 27, 2010
नई ज़मीं नया आसमाँ नहीं मिलता
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment