Tuesday, August 31, 2010

जाने क्यों शिक़स्त का अज़ाब लिए फिरता हूँ


जाने क्यों शिक़स्त का अज़ाब लिए फिरता हूँ
मैं क्या हूँ और क्या ख्वाब लिए फिरता हूँ

उसने एक बार किया था सवाल-ए-मोहब्बत
मैं हर लम्हा वफ़ा का जवाब लिए फिरता हूँ

उसने पूछा कब से नही सोए
मैं तब से रत-जगों का हिसाब लिए फिरता हूँ

उसकी ख्वाहिश थी के मेरी आँखों में पानी देखे
मैं उस वक़्त से आंसुओं का सैलाब लिए फिरता हूँ

अफ़सोस के फिर भी वो मेरी ना हुई "फ़राज़"
मैं जिस की आरज़ुओं की किताब लिए फिरता हूँ .

--अहमद फ़राज़

3 comments:

  1. दिल को छु लेने वाली रचना है .....
    http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/

    ReplyDelete
  2. बहुत ही अच्छी नज़म वाकई बहुत खूब....


    http://santoshkumar.tk/

    ReplyDelete