Monday, March 22, 2010

अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे

अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे
तेरी मर्ज़ी कि मुताबिक नज़र आयें कैसे

घर सजाने का तस्सवुर तो बहुत बाद का है
पहले ये तय हो कि इस घर को बचायें कैसे

क़ह-क़हा आँख की बरताव बदल देता है
हँसनेवाले तुझे आँसू नज़र आयें कैसे

कोई अपनी ही नज़र से तो हमें देखेगा
एक क़तरे को समुन्दर नज़र आयें कैसे

--वसीम बरेलवी

Source : http://www.urdupoetry.com/wbarelvi02.html

1 comment:

  1. Very very nice ye ghazlen meri zindagi ke qareeb hain.....

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