अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपायें कैसे
तेरी मर्ज़ी कि मुताबिक नज़र आयें कैसे
घर सजाने का तस्सवुर तो बहुत बाद का है
पहले ये तय हो कि इस घर को बचायें कैसे
क़ह-क़हा आँख की बरताव बदल देता है
हँसनेवाले तुझे आँसू नज़र आयें कैसे
कोई अपनी ही नज़र से तो हमें देखेगा
एक क़तरे को समुन्दर नज़र आयें कैसे
--वसीम बरेलवी
Source : http://www.urdupoetry.com/wbarelvi02.html
Very very nice ye ghazlen meri zindagi ke qareeb hain.....
ReplyDelete