बुलंदी देर तक किस शक्स के हिस्से मे रहती है,
बहुत ऊंची इमारत हर घड़ी ख़तरे मे रहती है
बहुत जी चाहता है क़ैद ए जान से हम निकल जायें,
तुम्हारी याद भी लेकिन इसे मलबे मे रहती है
यह ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नही सकता,
मैं जब तक घर ना लौटूं मेरी माँ सजदे मे रहती है
अमीरी रेशम-ओ-कमख्वाब मे नंगी नज़र आई
ग़रीबी शान से इक टाट के पर्दे मे रहती है
मैं इंसान हूँ बहक जाना मेरी फ़ितरत मे शामिल है,
हवा भी उसको छूकर देर तक नशे मे रहती है
मोहब्बत मे परखने जाँचने से फ़ायदा क्या है,
कमी थोड़ी बहुत हर एक के शज्जर मे रहती है
ये अपने आप को तक्सीम कर लेता है सूबों मे ,
खराबी बस यही हर मुल्क के नक्शे मे रहती है
--मुनव्वर राणा
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Tuesday, November 9, 2010
बुलंदी देर तक किस शक्स के हिस्से मे रहती है
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