रास्ता भी कठिन था धूप में शिद्दत भी बहुत थी
साए से मगर उसको मोहब्बत भी बहुत थी
कुछ तेरे ही मौसम जो मुझे रास न आये
कुछ मेरी ही मिट्टी में बगावत भी बहुत थी
--अज्ञात
साए से मगर उसको मोहब्बत भी बहुत थी
कुछ तेरे ही मौसम जो मुझे रास न आये
कुछ मेरी ही मिट्टी में बगावत भी बहुत थी
--अज्ञात
वाह्…………………गज़ब का भाव्।
ReplyDeleteI don't know the source, but i remember few more lines of this:
ReplyDeleteis tarq-e-rifaqat se pareshaan to hu lekin,
ab tak k tere sath pe hairat bhi bahut thi,
khush aaye tujhe shahar-e-munafiq ki ameeri,
hum logo ko sach kehne ki aadat bhi bahut thi
Thanks Ankita, for sharing...
ReplyDeleteParveen shakir
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