‘पैमाना-ए-मोहब्बत’ लबरेज तो नहीं है
पूछते है वो ..ये ‘नशा’ तेज तो नहीं है
‘झिझक’ .. तो कभी ‘एहतियात’ का हवाला
वैसे उन्हें ‘इश्क’ से ‘परहेज़’ तो नहीं है
--अमित हर्ष
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Thursday, December 29, 2011
वैसे उन्हें ‘इश्क’ से ‘परहेज़’ तो नहीं है
Tuesday, December 27, 2011
उसने कहा क्या बात है, मैंने कहा कुछ भी नहीं
मेरी गज़ल का मुद्दा उसके सिवा कुछ भी नही
उसने कहा क्या बात है, मैंने कहा कुछ भी नहीं
जिस से न कहना था कभी, जिस से छुपाना था सभी
सब कुछ उसी से कह दिया, मुझसे कहा कुछ भी नहीं
चलना है राह-ए-जीस्त में अपने ही साथ एक-ओ-मुद्दत
कहने को है एक वाकया, और वाकया कुछ भी नहीं
अब के भी एक आंधी चली, अभी के भी सब कुछ हो गया
अब के भी सब बातें हुईं, लेकिन हुआ कुछ भी नहीं
दिल को बचाने के लिए, जाँ को सिपर करते रहे
लोगों से आखिर क्या कहें, 'शैपर' बचा कुछ भी नहीं
--अज्ञात
बच्चों को झूठ बोलना हमने सिखा दिया
मैंने तो लौ बढ़ा के उजाला बढ़ा दिया
मेरे चराग ने मेरा घर ही जला दिया
अपने घरों में मसलाहतन झूठ बोल कर
बच्चों को झूठ बोलना हमने सिखा दिया
सच बात जानने की है फुरसत किसे यहाँ
जिसने भी जो सुना उसे आगे बढ़ा दिया
--अज़हर इनायती
Saturday, December 24, 2011
क्या लोगे इसका दाम ? बताना सही सही
कहना ग़लत ग़लत तो छुपाना सही सही
कासिद, कहा जो उसने, बताना सही सही
[कासिद=messenger]
दिल ले के मेरा हाथ में, कहते हैं मुझसे वो
क्या लोगे इसका दाम ? बताना सही सही
--अज्ञात
Saturday, December 17, 2011
यूं न मिल, मुझसे खफा हो जैसे
यूं न मिल, मुझसे खफा हो जैसे
साथ चल, मौज-ए-सबा हो जैसे
लोग यूं देख कर हंस देते हैं
तू मुझे भूल गया हो जैसे
मौत भी आई तो इस नाज़ के साथ
मुझ पे एहसान किया हो जैसे
ऐसे अनजान बने बैठे हो
तुमको कुछ भी न पता हो जैसे
हिचकियाँ रात को आती ही रहीं
तू ने फिर याद किया हो जैसे
ज़िंदगी बीत रही है दानिश
इक बे-जुर्म सज़ा हो जैसे
--एहसान दानिश
खबर क्या थी के ये अंजाम होगा दिल लगाने का
कहीं दो दिल जो मिल जाते बिगड़ता क्या ज़माने का
खबर क्या थी के ये अंजाम होगा दिल लगाने का
--अज्ञात
इतना आसाँ नहीं होता किसी को अपना बना लेना
रूह तक नीलाम हो जाती है बाज़ार-ऐ-इश्क मे
इतना आसाँ नहीं होता किसी को अपना बना लेना
--अज्ञात
कभी-कभी ऐसे भी मेरी हार हुई है.......
रह कर खामोश, वो मेरी बात सुनता गया
कभी-कभी ऐसे भी मेरी हार हुई है.........!
--अज्ञात
रुकता तो सफ़र जाता, चलता तो उस से बिछड़ जाता
सामने मंजिल थी, पीछे उस की आवाज़;
रुकता तो सफ़र जाता, चलता तो उस से बिछड़ जाता
महखाना भी उस का था, मेह्कार भी उस का;
पीता तो ईमान जाता, न पीता तो सनम जाता
--अज्ञात
[mehkar=saaki]
Courtesy : HS Kukreja status message on facebook
Sunday, December 11, 2011
विसाल-ए-यार फक़त आरज़ू की बात नहीं
न आज लुत्फ़ कर इतना कि कल गुज़ार न सके,
वो रात जो की तेरे गेसुओं की रात नहीं
ये आरज़ू भीई बड़ी चीज़ है मगर हमदम
विसाल-ए-यार फक़त आरज़ू की बात नहीं
--महबूब फैज़ साहब
लेकिन खुदा क़सम ,तुझे भूले नहीं है हम !!
न तेरी याद ,न तसव्वुर ,न तेरा ख़याल
लेकिन खुदा क़सम ,तुझे भूले नहीं है हम !!
--अज्ञात
मैं इस उम्मीद में डूबा कि तू बचा लेगा
मैं इस उम्मीद में डूबा कि तू बचा लेगा
अब इसके बाद मेरा इम्तिहान क्या लेगा
ये एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा
ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा
मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा
कोई चराग़ नहीं हूँ जो फिर जला लेगा
कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए
जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा
हज़ार तोड़ के आ जाऊं उस से रिश्ता वसीम
मैं जानता हूँ वह जब चाहेगा बुला लेगा
मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे
लकीरें हाथ की अपने वह सब जला लेगा
--वसीम बरेलवी
A different version of this gazal is available at
http://aligarians.com/2006/02/main-is-ummiid-pe-duubaa-ke-tuu-bachaa-legaa/
Saturday, December 10, 2011
दिल है या के शीशा क्या है
दिल है या के शीशा क्या है
देखो तो ये टूटा क्या है
सारे तेरे दीवाने हैं
आखिर तुझ में ऐसा क्या है
बिन बोले सब कुछ कह देती
इन आँखों की भाषा क्या है
मैंने क्या समझाना चाहा
जाने तूने समझा क्या है
धीरे धीरे देखे जा तू
आगे आगे होता क्या है
विज्ञापन नंगी तसवीरें
अखबारों में छपता क्या है
किसको फुरसत है सुनने की
अपना दुखड़ा रोना क्या है
--अजय अज्ञात
ये सोचा नहीं है किधर जाएँगे
ये सोचा नहीं है किधर जाएँगे
मगर हम यहाँ से गुज़र जाएँगे
इसी खौफ से नींद आती नहीं
कि हम ख्वाब देखेंगे डर जाएँगे
डराता बहुत है समन्दर हमें
समन्दर में इक दिन उतर जाएँगे
जो रोकेगी रस्ता कभी मंज़िलें
घड़ी दो घड़ी को ठहर जाएँगे
कहाँ देर तक रात ठहरी कोई
किसी तरह ये दिन गुज़र जाएँगे
इसी खुशगुमानी ने तनहा किया
जिधर जाऊँगा, हमसफ़र जाएँगे
बदलता है सब कुछ तो 'आलम' कभी
ज़मीं पर सितारे बिखर जाएँगे
- आलम खुर्शीद
Wednesday, December 7, 2011
कहने को उस से इश्क की तफसीर है बहुत
कहने को उस से इश्क की तफसीर है बहुत
पढ़ ले तो सिर्फ आँख की तहरीर है बहुत
[Tafseer : Exposition, Key
Tehreer : Hand Writing]
तहलील कर के शिद्दत-ए-एहसास रंग में
बन जाए तो एक ही तस्वीर है बहुत
[Tehleel : To Mix in Some Thing]
दस्तक से दर का फासला है एतमाद का
पर लौट जाने को यही ताखीर है बहुत
[Aitamaad : Faith]
[Taakheer : Late]
बैठा रहा वो पास तो मैं सोचती रही
खामोशियों की अपनी भी तासीर है बहुत
[Taseer : Effect]
तामीर कर रहा है मोहब्बत का वो हिसार
मेरे लिए ख़ुलूस की ज़ंजीर है बहुत
[Tameer : Building
Hisaar : Fort, Enclosure, Fence, Grasp, Hold
Khuloos : Sincerity]
मैं उस से अपनी बात कहूँ शेर लिख सकूं
अलफ़ाज़ दे वो जिन में के तासीर है बहुत
--फातिमा हसन
दिल वो पागल के कोई बात न माने जैसे
जागती रात के होंटों पे फ़साने जैसे
एक पल में सिमट आयें हों ज़माने जैसे
अक्ल कहती है भुला दो जो नहीं मिल पाया
दिल वो पागल के कोई बात न माने जैसे
रास्ते में वही मंज़र हैं पुराने अब तक
बस कमी है तो नहीं लोग पुराने जैसे
आइना देख के एहसास यही होता है
ले गया वक़्त हो उम्रों के खजाने जैसे
रात की आँख से टपका हुआ आंसू वसी
मखमली घास पे मोती के हों दाने जैसे
--वसी शाह
Tuesday, December 6, 2011
मुझ को हर शख़्स ने दिल अपना दिखाना चाहा
हाल-ए-दिल मैं ने जो दुनिया को सुनाना चाहा
मुझ को हर शख़्स ने दिल अपना दिखाना चाहा
[shaKhs = person]
अपनी तस्वीर बनाने के लिये दुनिया में
मैं ने हर रंग पे इक रंग चढ़ाना चाहा
ख़ाक-ए-दिल जौहर-ए-आईना के काम आ ही गई
लाख दुनिया ने निगाहों से गिराना चाहा
शोला-ए-बर्क़ से गुलशन को बचाने के लिये
मैं ने हर आग को सीने में छुपाना चाहा
[sholaa-e-barq = spark of lightning; gulashan = garden]
अपने ऐबों को छुपाने के लिये दुनिया में
मैंने हर शख़्स पे इल्ज़ाम लगाना चाहा
[aib = vice/fault; ilzaam = allegation/accusation]
ग़ैरत-ए-मौज उसे फेंक गई साहिल पर
डूबने वाले ने जब शोर मचाना चाहा
--करार नूरी
इस दौर में किसी का मुक़द्दर नहीं कोई
माना के उन के नेज़ों पे अब सर नहीं कोई
क्या उन के आस्तीन में भी ख़ंजर नहीं कोई
मजबूरियों ने घर से निकलने ना दिया
दुनिया समझ रही है मेरा घर नहीं कोई
अब क्या करेंगे हम नये सूरज की रोशनी
जब देखने के वास्ते मंज़र नहीं कोई
दिल हो रहा है देर से ख़ामोश झील सा
क्या दोस्तों के हाथ में पत्थर नहीं कोई
क़िस्मत सभी की वक़्त के हाथों में रहती है
इस दौर में किसी का मुक़द्दर नहीं कोई
--सागर अजमी
Friday, December 2, 2011
सौ बार चमन महका, सौ बार बहार आई
सौ बार चमन महका, सौ बार बहार आई
दुनिया की वही रौनक, दिल की वही तनहाई
--अज्ञात
Thursday, December 1, 2011
मेरी सुर्ख सुर्ख आँखें मुझे बता रही हैं
मेरी सुर्ख सुर्ख आँखें मुझे बता रही हैं
फिर सुबह कर दी मैंने उसे याद करते करते !!
--अज्ञात
क्या खूब मिली थी उनसे मेरी नज़र किसी रोज
तय करना था एक लंबा सफर पर कोई हमसफ़र नहीं था
मुझपे आते जाते मौसमों का कोई असर नहीं था
क्या खूब मिली थी उनसे मेरी नज़र किसी रोज
अब न मिले वो एक पल भी तो हमको सबर नहीं था
--अज्ञात
Wednesday, November 30, 2011
ऐसा नहीं के हम को मोहब्बत नहीं मिली
ऐसा नहीं के हम को मोहब्बत नहीं मिली
हाँ जैसे चाहते थे वो कुरबत नहीं मिली
मिलने को ज़िंदगी में कईं हमसफ़र मिले
लेकिन तबीयत से तबीयत नहीं मिली
चेहरों के हर हुजूम में हम ढूँढ़ते रहे
सूरत नहीं मिली, कहीं सीरत नहीं मिली
वो यक-ब-यक मिला तो बहुत देर तक हमें
अलफ़ाज़ ढूँढने की भी मोहलत नहीं मिली
उसको गिला रहा के तवज्जो न दी उसे
लेकिन हमें खुद अपनी रफाक़त नहीं मिली
हर शक्स ज़िंदगी में बहुत देर से मिला
कोई भी चीज़ हस्ब-ए-ज़रूरत नहीं मिली
तुम ने तो कह दिया के मोहब्बत नहीं मिली
मुझको तो ये भी कहने की मोहलत नहीं मिली
--अज्ञात
Saturday, November 26, 2011
मुद्दत के बाद देखा उसे, बदला हुआ था वो
मुद्दत के बाद देखा उसे, बदला हुआ था वो
न जाने क्या हादसा हुआ, सहमा हुआ था वो
मुझे देख कर उसने चेहरा तो छुपा लिया
मगर आँखें बता रही थी के रोया हुआ था वो
उसकी आँखों में देख कर महसूस हुआ मुझे
मेरी तरह किसी सोच में डूबा हुआ था वो
उसकी सोने जैसी रंगत ज़र्द पड़ गयी थी
जैसे किसी के प्यार में जला हुआ था वो
कुर्बान जाऊ उस शक्स पर मैं
याद में जिसकी कोह्या हुआ था वो
--अज्ञात
Thursday, November 24, 2011
मैं गुम रहती हूँ उसकी यादों के मेले में
मैं गुम रहती हूँ उसकी यादों के मेले में
उसे दिल से भुलाना है, मगर फुरसत नहीं मिलती
--अज्ञात
वो कहता था, बिछडूगा तो मर जाऊँगा
उसका दावा भी उसकी तरह झूठा निकला
वो कहता था, बिछडूगा तो मर जाऊँगा
--अज्ञात
मायूस कैदियों की तरह
जीने को तो जी रहे हैं उन के बगैर भी लेकिन
सजा-ए-मौत के मायूस कैदियों की तरह
--अज्ञात
मेरे चेहरे पर तेरा नाम न पढ़ ले कोई
काँप उठती हूँ मैं सोच कर तन्हाई में
मेरे चेहरे पर तेरा नाम न पढ़ ले कोई
--प्रवीण शाकिर
मानो मेरी बात, ज़माना ठीक नहीं
सबको दिल का हाल सुनाना ठीक नहीं
मानो मेरी बात, ज़माना ठीक नहीं
अपना तो जनमों का नाता है जानम
लोगों की बातों में आना ठीक नहीं
इज्ज़त से खाओ तो रोटी रोटी है,
ज़िल्लत का ये आब-ओ-दाना ठीक नहीं
[आब-ओ-दाना=Water and food]
लपटें तेरे घर तक भी तो आयेंगी
मेरे घर को आग लगाना ठीक नहीं
उससे कहो सजदे नामरहम होते हैं
वक्त-ए-दुआ यादों में आना ठीक नहीं
[नामरहम=impure]
दिल को मेरे ज़ख्मों से छलनी करके
वो कहते हैं यार निशाना ठीक नहीं
जितना पीयो उतनी प्यास बढ़ाता है
साकी तेरा ये पैमाना ठीक नहीं
हर इक दर्द गम-ए-जाना से हल्का है,
दुनिया वालों का गम-खाना ठीक नहीं
[गम-खाना =house of sorrows]
छोडो यारा दर्द के किस्से, उसकी बात,
उसको कलम की नोक पे लाना ठीक नहीं
Vipul Yaara on facebook
Wednesday, November 23, 2011
ऐसी भी तो किसी से मोहब्बत कभी ना हो
क्या ये भी ज़िन्दगी है कि राहत कभी ना हो
ऐसी भी तो किसी से मोहब्बत कभी ना हो
[raahat=relief (from)]
वादा ज़रूर करते हैं आते नहीं कभी
फिर ये भी चाहते हैं शिकायत कभी ना हो
[shikaayat=complaint]
शाम-ए-विसाल भी ये तग़ाफ़ुल ये बेरुख़ी
तेरी रज़ा है मुझको मसर्रत कभी ना हो
[visaal=union/meeting; taGaaful=neglect; beruKhii=aloofness caused by anger]
[razaa=will/desire; masarrat=happiness]
अहबाब ने दिये हैं मुझे किस तरह फ़रेब
मुझसा भी कोई सादा तबीयत कभी ना हो
[ahabaab=friends (plural of habiib); fareb=deception]
लब तो ये कह रहे हैं के उठ, बढ़ के चूम ले
आँखों का ये इशारा के जुर्रत कभी ना हो
[jurr’at=daring]
दिल चाहता है फिर वही फ़ुर्सत के रात दिन
मुझको तो तेरे ख़याल से फ़ुर्सत कभी ना हो
--कृष्ण मोहन
देखते ही देखते कितने बदल जाते हैं लोग
हर क़दम पर नित नये सांचे में ढल जाते हैं लोग
देखते ही देखते कितने बदल जाते हैं लोग
किस लिए कीजिए किसी गुम-गश्ता जन्नत की तलाश
जब कि मिट्टी के खिलौनों से बहल जाते हैं लोग
कितने सादा-दिल हैं अब भी सुन के आवाज़-ए-जरस
पेश-ओ-पास से बे-खबर घर से निकल जाते हैं लोग
शमा की मानिंद अहल-ए-अंजुमन से बे-न्याज़
अक्सर अपनी आग मैं चुप चाप जल जाते हैं लोग
शाएर उनकी दोस्ती का अब भी दम भरते हैं आप
ठोकरें खा कर तो सुनते हैं संभल जाते हैं लोग
हिमायत अली शाएर
तू बहुत देर से मिला है मुझे
ज़िंदगी से यही गिला है मुझे
तू बहुत देर से मिला है मुझे
हमसफ़र चाहिये हुजूम नहीं
इक मुसाफ़िर भी क़ाफ़िला है मुझे
दिल धड़कता नहीं सुलगता है
वो जो ख़्वाहिश थी आबला है मुझे
लबकुशा हूँ तो इस यक़ीन के साथ
क़त्ल होने का हौसला है मुझे
तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल
हार जाने का हौसला है मुझे
कौन जाने के चाहतों में 'फ़राज़'
क्या गँवाया है क्या मिला है मुझे
--अहमद फ़राज़
Audio : https://sites.google.com/site/mmgulaamalighazals/ZindgiSeYehiGilaHaiMujhe%40Mp3HunGama.Com.mp3?attredirects=0&d=1
Tuesday, November 22, 2011
तो ये तय है के अब उम्र भर नहीं मिलना
तो ये तय है के अब उम्र भर नहीं मिलना
तो फिर ये उम्र ही क्यूँ गर तुझसे नहीं मिलना
--अज्ञात
Audio : http://musicmahfil.blogspot.com/2011/11/ustaad-ghulam-ali-very-famous-name-of.html
Sunday, November 20, 2011
उसकी आदत है, वो अपनों को भुला देता है
जाने किस चीज़ की वो मुझको सज़ा देता है
मेरी हँसती हुई आँखों को रुला देता है
किसी तरह बात लिखूं दिल की उससे, वो अक्सर
दोस्तों को मेरे खत पढ़ के सुना देता है
सामने रख के निगाहों के वो तस्वीर मेरी
अपने कमरे के चरागों को बुझा देता है
मुद्दतों से तो खबर भी नहीं भेजी उसने
उसकी आदत है, वो अपनों को भुला देता है
--वसी शाह
Saturday, November 19, 2011
न थी दुश्मनी किसी से, तेरी दोस्ती से पहले
हमें कोई गम न था, गम-ए-आशिकी से पहले
न थी दुश्मनी किसी से, तेरी दोस्ती से पहले
ये है मेरी बदनसीबी, तेरा क्या कुसूर इसमें
तेरे गम ने मार डाला, मुझे जिंदगी से पहले
मेरा प्यार जल रहा है, ए चाँद आज छुप जा
कभी प्यार कर हमें भी, तेरी चांदनी से पहले
ये अजीब इम्तेहान है, कि तुम्ही को भूलना है
मिले कब थे इस तरह हम, तुम्हे बेदिली से पहले
न थी दुश्मनी किसी से, तेरी दोस्ती से पहले
--फैयाज़ हाशमी
हम समझते रहे पत्थर भी पिघल जाते हैं
मिल भी जाते हैं तो कतरा के निकल जाते हैं
हाय !! मौसम की तरह दोस्त बदल जाते हैं
हम अभी तो हैं गिरफ्तार-ए-मोहब्बत यारो
ठोकरें खा के सुना था कि संभल जाते हैं
ये कभी अपनी जफा पर न हुआ शर्मिन्दा
हम समझते रहे पत्थर भी पिघल जाते हैं
उम्र भर जिनकी वफाओं पे भरोसा कीजे
वक़्त पड़ने पे वही लोग बदल जाते हैं
--बशीर बद्र
नज़र उठाओ ज़रा तुम तो क़ायनात चले
नज़र उठाओ ज़रा तुम तो क़ायनात चले,
है इन्तज़ार कि आँखों से कोई बात चले
तुम्हारी मर्ज़ी बिना वक़्त भी अपाहज है
न दिन खिसकता है आगे, न आगे रात चले
न जाने उँगली छुड़ा के निकल गया है किधर
बहुत कहा था जमाने से साथ साथ चले
किसी भिखारी का टूटा हुआ कटोरा है
गले में डाले उसे आसमाँ पे रात चले
--गुलज़ार
Audio : http://tanhayi.mywebdunia.com/2008/11/11/1226401126621.html
बेकरारी गयी, करार गया
बेकरारी गयी, करार गया
तर्क-ए-इश्क और मुझको मार गया
वो जो आये तो खुश्क हो गए अश्क
आज गम का भी ऐतबार गया
हम न हंस ही सके, न ही रो सके
वो गए या हर इख्तियार गया
आप की जिद-ए-बे-महल से कलीम
सब की नज़रों का ऐतबार गया
आ गए वो तो अब ये रोना है
लुत्फ़-ए-गम, लुत्फ़-ए-इंतज़ार गया
किस मज़े से तेरे बगैर "खुमर"
बे जिए ज़िंदगी गुज़ार गया
--खुमार बरबनकवी
रहें ज़िन्दा सलामत यार मेरे
करे दरिया ना पुल मिस्मार मेरे
अभी कुछ लोग हैं उस पार मेरे
{{मिस्मार=destroy}}
बहुत दिन गुज़रे अब देख आऊँ घर को
कहेंगे क्या दर-ओ-दीवार मेरे
वहीं सूरज की नज़रें थीं ज़ियादा
जहाँ थे पेड़ सायादार मेरे
वही ये शहर है तो शहर वालो
कहाँ है कूचा-ओ-बाज़ार मेरे
तुम अपना हाल-ए-महजूरी सुनाओ
मुझे तो खा गये आज़ार मेरे
{{हाल-ए-महजूरी=state of separation; आज़ार=illness/woes}}
जिन्हें समझा था जान_परवर मैं अब तक
वो सब निकले कफ़न बर_दार मेरे
{{जान=life; परवर=protector/nourisher}}
{{कफ़न-बर_दार=shroud bearer}}
गुज़रते जा रहे हैं दिन हवा से
रहें ज़िन्दा सलामत यार मेरे
दबा जिस से उसी पत्थर में ढल कर
बिके चेहरे सर-ए-बाज़ार मेरे
{{सर-ए-बाज़ार=in public}}
दरीचा क्या खुला मेरी ग़ज़ल का
हवायें ले उड़ी अशार मेरे
{{दरीचा=window; अशार=plural of sher (couplet)}}
--महाशर बदायूनी
http://urdupoetry.com/mahashar01.html
मैं ये कैसे मान जाऊं के वो दूर जा के रोये
मेरी दास्तान-ए-हसरत वो सुना सुना के रोये
मेरे आज़माने वाले मुझे आज़मा के रोये
[दास्तान-ए-हसरत=tale of desire]
कोई ऐसा अहल-ए-दिल हो के फ़साना-ए-मुहब्बत
मैं उसे सुना के रो~uuँ वो मुझे सुना के रोये
[अहल-ए-दिल=resident of the heart;; फ़साना=tale]
मेरी आरज़ू की दुनिया दिल-ए-नातवाँ की हसरत
जिसे खो के शादमाँ थे उसे आज पा के रोये
[नातवाँ=weak; शादमाँ=happy]
तेरी बेवफ़ाइयों पर तेरी कज_अदाइयों पर
कभी सर झुका के रोये कभी मूँह छुपा के रोये
[बेवफ़ाई=infidelity; कज-अदाई=crudity/lack of gentility]
जो सुनाई अन्जुमन में शब-ए-ग़म की आप_बीती
कई रो के मुस्कुराये कई मुस्कुरा के रोये
[अन्जुमन=gathering; आप-बीती=first hand experience]
--सैफुद्दीन सैफ
Source : http://www.urdupoetry.com/saif03.html
गरज़ सजदा करवाती है, इबादत कौन करता है
कोई जन्नत का तलबगार है, कोई गम से परेशान है
गरज़ सजदा करवाती है, इबादत कौन करता है
--अज्ञात
उसको भूला मगर नहीं जाता
तेरी बातों पे गर नहीं जाता
मेरे शानो से सर नहीं जाता
मैं भी गलियों में कम ही फिरता हूँ
वो भी अब बाम पर नहीं जाता
[बाम=छत]
लाख उसने भुला दिया हमको,
उसको भूला मगर नहीं जाता
शब-ए-हिजरां भी कट ही जायेगी
हिजर में कोई मर नहीं जाता
[शब-ए-हिजरां=जुदाई की रात]
[हिजर=जुदाई]
शिकवा-ए-दाग-ए-ज़ख्म है वरना,
कौन सा ज़ख्म भर नहीं जाता
[शिकवा-ए-दाग-ए-ज़ख्म=complaint of scar of wound]
रब्त-ए-आशोब-ओ-ज़ब्त-ए-रुसवाई
दिल का इक ये हुनर नहीं जाता
[रब्त-ए-आशोब-ओ-रुसवाई=Relation with Problems and Control of Infamy]
आह !! जाता हूँ घर अकेले मैं
साथ इक नौहा-गर नहीं जाता
[नौहा-गर=Mourner, A person who attends a funeral as a relative or friend of the dead person]
ध्यान सजदों में तुझ पे रहता है
काबे जाता हूँ, पर नहीं जाता
कितना रोता है उसकी यादों में
हैफ !! 'यारा' तू मर नहीं जाता
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मेरी यादों से अगर बच निकलो
मेरी यादों से अगर बच निकलो
तो वादा है मेरा तुमसे
मैं खुद दुनिया से कह दूंगा
कमी मेरी वफ़ा में थी
--अज्ञात
कैसी गुज़र रही है, सभी पूछते हैं
कैसी गुज़र रही है, सभी पूछते हैं
कैसे गुजारता हूँ, कोई पूछता नहीं
--अज्ञात
Tuesday, November 15, 2011
तेरी सूरत से नहीं मिलती किसी की सूरत
तेरी सूरत से नहीं मिलती किसी की सूरत
हम जहाँ में तेरी तस्वीर लिए फिरते हैं
--हसरत जयपुरी
Source : http://lyricsindia.net/songs/show/6530
दुनिया करती रही तेरे वजूद को तलाश
दुनिया करती रही तेरे वजूद को तलाश
हमने तेरे ख़याल को मोहब्बत बना लिया
--अज्ञात
Sunday, November 13, 2011
दिन रात माह-ओ-साल से आगे नहीं गये
दिन रात माह-ओ-साल से आगे नहीं गये,
हम तो तेरे ख्याल से आगे नहीं गये,
लोगों ने रोज़ ही नया मांगा खुदा से कुछ,
एक हम तेरे सवाल से आगे नहीं गये
सोचा था मेरे दुःख का मुदावा करेंगे कुछ
वो पुरसिश-ए-मलाल से आगे नहीं गए
[मुदावा=Cure]
पुरसिश=Inquiry, To Show Concern (About)
क्या जुल्म है की इश्क का दावा उन्हें भी है
जो हद-ए-एतदाल से आगे नहीं गए
- मोहतरमा शबनम शकील
Saturday, November 12, 2011
कुछ न हाथ लगा तेरे, ऐसे मेरा दिल तोड़ के
कुछ न हाथ लगा तेरे, ऐसे मेरा दिल तोड़ के
हमें तो गम-ए-इश्क की सल्तनत मिल गयी
--अज्ञात
किसी ने ज़हर कहा है, किसी ने शहद कहा,
किसी ने ज़हर कहा है, किसी ने शहद कहा,
कोई समझ ही नहीं पाता है, ज़ायका मेरा
--राहत इंदोरी
Wednesday, November 9, 2011
जब मेरी कहानी में वो नाम नहीं होता
आग़ाज़ तो होता है अन्जाम नहीं होता
जब मेरी कहानी में वो नाम नहीं होता
[aaGaaz = start; anjaam = end/result]
जब ज़ुल्फ़ की कालिख में घुल जाये कोई रही
बद_नाम सही लेकिन गुम_नाम नहीं होता
[kaalikh = blackness]
हँस हँस के जवाँ दिल के हम क्यों ना चुनें टुकड़े
हर शख़्स की क़िस्मत में इनाम नहीन होता
बहते हुए आँसू ने आँखों से कहा थम कर
जो मै से पिघल जाये वो जाम नहीं होता
दिन डूबे हैं या डूबी बारात लिये कश्ती
साहिल पे मगर कोई कोहराम नहीं होता
--मीना कुमारी 'नाज़'
Source : http://www.urdupoetry.com/meena02.html
दोस्तों से शिकायतें होंगी,
जो किसी का बुरा नहीं होता,
शख्स ऐसा भला नहीं होता !
दोस्तों से शिकायतें होंगी,
दुश्मनों से गिला नहीं होता !
हर परिंदा स्वयं बनाता है,
अर्श पे रास्ता नहीं होता !
इश्क के कायदे नहीं होते,
दर्द का फ़लसफ़ा नहीं होता !
फ़ितरतन गल्तियां करेगा वो,
आदमी देवता नहीं होता !
ख़त लिखोगे हमें कहाँ आखिर,
जोगियों का पता नहीं होता !
--अज्ञात
Source : http://shivomambar.blogspot.com/2011/06/blog-post_06.html
तुम भी उस वक़्त याद आते हो
ना हो गर आशना नहीं होता
बुत किसी का ख़ुदा नहीं होता
तुम भी उस वक़्त याद आते हो
जब कोई आसरा नहीं होता
दिल में कितना सुकून होता है
जब कोई मुद्दवा नहीं होता
हो ना जब तक शिकार-ए-नाकामी
आदमी काम का नहीं होता
ज़िन्दगी थी शबाब तक "सीमाब"
अब कोई सानेहा नहीं होता
--सीमाब अकबराबादी
Source : http://www.urdupoetry.com/singers/JC284.html
Tuesday, November 8, 2011
मेरी आँखों में नमी का ही समां रहता है
मेरी आँखों में नमी का ही समां रहता है
दिल में एक दर्द जो मुद्दत से जवां रहता है
वो जो कहता था कह बिछड़ेंगे तो मर जायेंगे
अब ये मालूम नहीं है के कहाँ रहता है
एक उसको मेरी चाहत की ज़रूरत न रही
वरना मेरा तो तलबगार जहां रहता है
वो समझता है के मैं भूल गया हूँ उसको
खुद से भी ज्यादा मुझे जिस का ध्यान रहता है
यूं उदासी मेरे सर पर है मुसल्लत जैसे
जैसे दिल पे कोई ज़ख्मों का निशां रहता है
--अज्ञात
Monday, November 7, 2011
बेवफ़ा तेरे रूठ जाने से
बेवफ़ा तेरे रूठ जाने से
आँख मिलती नहीं ज़माने से
आरिज़ा हो गया है रोने का
चन्द घड़ियों के मुस्कुराने से
(आरिज़ा : compensate)
कितने तूफ़ान उठेंगे साहिल पर
एक कश्ती के डूब जाने से
ढूँढ आया तुझे ज़माने में
तुम कहाँ गुम हो एक ज़माने से
अब तो दुनिया से जा रहा हूँ मैं
लौट आओ इसी बहाने से
किस क़दर बढ़ गयी है लज़्ज़त-ए-गम
शिद्दत-ए-गम में मुस्कुराने से
(शिद्दत-ए-गम : intensity of Pain)
दार ही को गले लगाओ शमीम
मौत बेहतर है सर झुकाने से
--शमीम जयपुरिया
नयी ख्वाहिश रचाई जा रही है
नयी ख्वाहिश रचाई जा रही है
तेरी फुरकत मनाई जा रही है
(फुरकत : separation)
निभाई थी न हमने जाने किस से
के अब सब से निभाई जा रही है
--जौन एलिया
Source : http://aligarians.com/2007/05/nayii-khvaahish-rachaaii-jaa-rahii-hai/
खुद को पढ़ता हूँ, छोड़ देता हूँ
खुद को पढ़ता हूँ, छोड़ देता हूँ
एक वर्क रोज मोड़ देता हूँ
इस क़दर ज़ख्म हैं निगाहों में
रोज एक आइना तोड़ देता हूँ
मैं पुजारी बरसते फूलों का
छु के शाखों को छोड़ देता हूँ
कासा-ए-शब में खून सूरज का
कतरा कतरा निचोड़ देता हूँ
(कासा-ए-शब : begging bowl of the night)
कांपते होंट भीगती पलकें
बात अधूरी ही छोड़ देता हूँ
रेत के घर बना बना के फराज़
जाने क्यूं खुद ही तोड़ देता हूँ
--ताहिर फराज़
http://aligarians.com/2007/05/khud-ko-parhtaa-huun-chhor-detaa-huun/
फूल सा कुछ कलाम और सही
फूल सा कुछ कलाम और सही
एक गज़ल उसके नाम और सही
उसकी जुल्फें बहुत घनेरी हैं
एक शब का कयाम और सही
(कयाम=stay)
ज़िंदगी के उदास किस्से हैं
एक लड़की का नाम और सही
करसियों को सुनाइये गज़लें
क़त्ल की एक शाम और सही
कपकपाती है रात सीने में
ज़हर का एक जाम और सही
--बशीर बद्र
http://aligarians.com/2007/05/phuul-saa-kuch-kalaam-aur-sahii/
बस एक ख़याल चाहिए था
कब उसका विसाल चाहिए था
बस एक ख़याल चाहिए था
(विसाल=meeting)
कब दिल को जवाब से गरज़ थी
होंटों को सवाल चाहिए था
शौक़ एक नफस था, और वफ़ा को
पास-ए-माह-ओ-साल चाहिए था
(नफस : moment, माह-ओ-साल : months and years)
एक चेहरा-ए-सादा था जो हमको
बे-मिस्ल-ओ-मिसाल चाहिए था
(बे-मिस्ल-ओ-मिसाल : incomparable)
एक कर्ब में ज़ात-ओ-ज़िंदगी हैं
मुमकिन को मुहाल चाहिए था
--जौन एलिया
Source : http://aligarians.com/2008/04/kab-uskaa-visaal-chaahiye-thaa/
भरोसा ही कुछ ऐसा था तुम्हारे लौट आने का
इरादा छोड़ दिया उसने हदों से जुड़ जाने का
ज़माना है, ज़माने की निगाहों में न आने का
कहाँ की दोस्ती, किन दोस्तों की बात करते हो
मियाँ दुश्मन नहीं मिलता कोई अब तो ठिकाने का
निगाहों में कोई भी दूसरा चेहरा नहीं आया
भरोसा ही कुछ ऐसा था तुम्हारे लौट आने का
ये मैं ही था बचा के खुद को ले आया किनारे तक
समंदर ने बहुत मौका दिया था डूब जाने का
--वसीम बरेलवी
Sunday, November 6, 2011
दिल को कब्र बना कर जाते तो अच्छा था
दिल को कब्र बना कर जाते तो अच्छा था
अरमानो को इसमें दफना कर जाते तो अच्छा था
जुदाई की सज़ा बड़ी तकलीफ देती है
मुझे दीवारों में चुनवा कर जाते तो अच्छा था
तुम्हारे बाद इन हसरतों का क्या होगा
इन्हें कफ़न पहना कर जाते तो अच्छा था
यू रोता छोड़ कर न जाते मुझको
मेरे दिल को बहला कर जाते तो अच्छा था
तेरी खातिर छोड़ सकते इस ज़माने को
इक बार हमें अजमा कर जाते तो अच्छा था
यूं दोस्ती पर दाग लगा कर न जाते था
रस्म-ए-दोस्ती निभा कर जाते तो अच्छा था
मेरी मय्यत में शिरकत तो न कर सके लेकिन
कब्र को फूलों से सजा कर जाते तो अच्छा था
हमारी आखों से नींद चुरा कर चले गए
मीठी नींद हमें सुला कर जाते तो अच्छा था
सागर को अंधेरों में तनहा छोड़ चले
दीप कोई जला कर जाते तो अच्छा था
दिल को कब्र बना कर जाते तो अच्छा था
अरमानो को इसमें दफना कर जाते तो अच्छा था
--अज्ञात
जो न मिल सके वही बेवफा
जो न मिल सके वही बेवफा, ये बड़ी अजीब सी बात है
जो चला गया मुझे छोड़ कर वही आज तक मेरे साथ है
जो मिल सके वो ही बेवफा ..........
जो किसी नजर से अदा हुई वही रौशनी है ख्याल में
वो न आ सके रहूँ मुंतजर, ये खलिश कहाँ थी विसाल में
मेरी जुस्तजू को खबर नहीं, न वो दिन रहे न वो रात है
जो चला गया मुझे छोड़ कर वही आज तक मेरे साथ है
जो मिल सके वो ही बेवफा ..........
करे प्यार लब पर गिला न हो, ये किसी किसी का नसीब है
ये करम है उसका जफा नहीं, वो जुदा भी रह कर करीब है
वो ही आँख है मेरे रूबरू, उसी हाथ में मेरा हाथ है
जो चला गया मुझे छोड़ कर वही आज तक मेरे साथ है
जो मिल सके वो ही बेवफा ..........
मेरा नाम तक जो न ले सका, जो मुझे करार न दे सका
जिसे इख़्तियार तो था मगर, मुझे अपना प्यार न दे सका
वही शख्स मेरी तलाश है, वो ही दर्द मेरी हयात है
जो चला गया मुझे छोड़ कर वही आज तक मेरे साथ है
जो मिल सके वो ही बेवफा ..........
Writer : Unknown.
[Sung by Noor Jahan]
Saturday, November 5, 2011
वो हर किसी को मुस्कुरा के देखते हैं
आज सारे चराग बुझा के देखते हैं
ज़िंदगी तुझे और पास आ के देखते हैं
अमावसों की रात गर देखना हो चाँद
हम उन्हें छत पे बुला के देखते हैं
मेरी रुखसती पे ये कैसी बेचैनी है उनको
मुझे जो जीने पे आ आ के देखते हैं
जब खुल के की बात, तो शरमा गयी वो
चलो आज खुद ही शरमा के देखते हैं
ये इश्क की कसौटी कोई आसान नहीं प्यारे
परवाने खुद को जला के देखते हैं
तू आशिक न सही बीमार समझ ही इनायत कर दे
हम इक बार ज़ोर से कराह के देखते हैं
उन्हें पसंद हैं आप, ये ग़लतफहमी ठीक नहीं
वो हर किसी को मुस्कुरा के देखते हैं
दुनिया भर के अफकारों से सुकून नहीं पाया
चलो आज माँ के पाँव दबा के देखते हैं
गर बेरुखी ही है अंजाम-ए-दोस्ती
फिर आज किसी दुश्मन से हाथ मिला के देखते हैं
हम गिरे तो क्या उनकी औकात तो नहीं बदली
देखो वो अब भी 'मिश्रा' को सर झुका के देखते हैं
--अभिषेक मिश्रा
और मैंने समझा के मेरा जवाब आया है
जब भी कभी हुस्न पे शबाब आया है
तो तेरे शहर ने समझा, इन्कलाब आया है
उन्होंने लौटाया मेरा ही लिखा खत मुझको
और मैंने समझा के मेरा जवाब आया है
--अज्ञात
Sunday, October 30, 2011
दो चार नहीं मुझको फक़त एक ही दिखा दो
दो चार नहीं मुझको फक़त एक ही दिखा दो
वो शक्स जो अंदर से भी बाहर की तरह हो
--जावेद अख्तर
Tuesday, October 25, 2011
मैंने सुकून के शौक में खोली थी दिल की खिड़कियाँ
मैंने सुकून के शौक में खोली थी दिल की खिड़कियाँ
तेरी यादों का सारा शोर भीतर आ गया
--शिल्पा अग्रवाल
तेरे इस पाकीज़ा आँचल पे दाग लग जाए
कुछ साजिशों में ये मेरे दिमाग लग जाए
मेरे हाथो में जो तेरा सुहाग लग जाए
तेरी और मेरी ये दुनिया जो कहानी सुनले
तेरे इस पाकीज़ा आँचल पे दाग लग जाए
सफ़ेद बर्फ सा वो जो बदन दिखता है
मैं उसे छू लूं किसी दिन तो आग लग जाए
--सतलज रहत
Saturday, October 22, 2011
हम तो नाकाम रहे चाहने वालों की तरह
ज़िंदगी जिस को तेरा प्यार मिला वो जाने...
हम तो नाकाम रहे चाहने वालों की तरह
--जान निसार अख्तर
तुम आये हो ना शब-ए-इंतज़ार गुजरी है
तुम आये हो ना शब-ए-इंतज़ार गुजरी है
तलाश में है सेहर बार बार गुजरी है
--फैज़ अहमद फैज़
वो बात सारे फ़साने में जिसका ज़िक्र न था
वो बात सारे फ़साने में जिसका ज़िक्र न था
वो बात उनको बहुत नागवार गुजरी है
--फैज़ अहमद फैज़
ना जाने कहाँ खो गया वो ज़माना
चमन की बहारों में था आशियाना
ना जाने कहाँ खो गया वो ज़माना
तुम्हें भूलने की मैं कोशिश करूँगा
ये वादा करो के ना तुम याद आना
मुझे मेरे मिटने का ग़म है तो ये है
तुम्हें बेवफ़ा कह रहा है ज़माना
ख़ुदारा मेरी क़ब्र पे तुम ना आना
तुम्हें देख कर शक़ करेगा ज़माना
--कमर जलालवी
Thursday, October 20, 2011
ये ज़िन्दगी रोज़ एक तमन्ना बढ़ा देती है !!
कुछ जीते हैं जन्नत की तमन्ना लेकर ,
कुछ तमन्नाये जीना सिखा देती हैं !
हम किस तमन्ना के सहारे जीये,
ये ज़िन्दगी रोज़ एक तमन्ना बढ़ा देती है !!
--अज्ञात
Tuesday, October 18, 2011
मेरा दुश्मन भी मेरे भाइयों में आता है
अब इसका ज़िक्र भी सच्चाइयों में आता है
मेरा दुश्मन भी मेरे भाइयों में आता है
लब पे नाम तो बरसों तलक नहीं आता
तेरा ख़याल पर तनहाइयों में आता है
हम शिखर भी दंगाइयों का होते हैं
हमारा नाम भी दंगाइयों में आता है
कभी मैं उसको रोने से रोकता ही नहीं
मुझे सुकून ही गहराइयों में आता है
तुम्हारे साथ जो तनहाइयों में रहता है
वो मेरे पास भी तनहाइयों में आता है
मेरा मौसम सा बचपन जो खो गया थ कहीं
अभी वो सुबह की अंगडाईयों में आता है
वो अब सुनाई भी खामोशियों में देता है
वो अब दिखाई भी परछाइयों में आता है
सुना है उसकी आँखें भी भीग जाती हैं
'सतलज' याद जब तनहाइयों में आता है
--सतलज राहत
Sunday, October 16, 2011
बहुत है उनकी हालत देखने वाले
उठे उठ कर चले चल कर रुके, रुक कर कहा होगा
मैं क्यूँ जाऊं? बहुत है उनकी हालत देखने वाले
--मुज़तर खैराबादी
किस दाम में बेचोगे, कितने का नया लोगे
इस शहर-ए-तिजारत में हर चीज़ मयस्सर है
कितने का नबी लोगे, कितने का खुदा लोगे
क्या दिल की धडकनों की आवाज़ सुनाते हो
किस दाम में बेचोगे, कितने का नया लोगे
--शहीद रिज़वी
जिन मनचलों ने जान लगा दी थी दाव पर
अब वो किसी बिसात की फेहरहिस्त में नहीं
जिन मनचलों ने जान लगा दी थी दाव पर
--अहसान दानिश
अजब नहीं कि अगर याद भी ना आऊँ उसे
करूँ ना याद अगर किस तरह भुलाऊँ उसे
ग़ज़ल बहाना करूँ और गुन_गुनाऊँ उसे
वो ख़ार-ख़ार है शाख़-ए-गुलाब की मानिन्द
मैं ज़ख़्म-ज़ख़्म हूँ फिर भी गले लगाऊँ उसे
[ख़ार=thorn, कांटे]
ये लोग तज़करे करते हैं अपने लोगों से
मैं कैसे बात करूँ और कहाँ से लाऊँ उसे
[तज़करे=narration/descrption]
मगर वो ज़ूद_फ़रामोश ज़ूद रन्ज भी है
के रूठ जाये अगर याद कुछ दिलाऊं उसे
वही जो दौलत-ए-दिल है वही जो राहत-ए-जाँ
तुम्हारी बात पे ऐ नासिहो गँवाऊँ उसे
जो हम_सफ़र सर-ए-मन्ज़िल बिछड़ रहा है 'फराज़'
अजब नहीं कि अगर याद भी ना आऊँ उसे
--अहमद फ़राज़
Source : http://urdupoetry.com/faraz29.html
बात अगर बात हो गयी होती
बात अगर बात हो गयी होती
एक करामात हो गयी होती,
हम अगर अपनी जिद पे अड़ जाते
आप को मात हो गयी होती
उम्र इस आरज़ू में बीत गयी
उन से इक बात हो गयी होती
--अब्दुल हमीद अदाम
मगर ए काश हम दोनों, हमीं दोनों पे मर जाते
कईं बदनामियां होतीं, कईं इलज़ाम सर जाते
मगर ए काश हम दोनों, हमीं दोनों पे मर जाते
--यसीन शाही
Monday, October 10, 2011
के वो ख़्वाबों में भी लगती है, ख्यालों जैसी
ढूँढता फिरता हूँ यूं लोगों में सोहबत उसकी
के वो ख़्वाबों में भी लगती है, ख्यालों जैसी
--अहमद फराज़
Sunday, October 9, 2011
आज लिखते लिखते शाम न हो जाए
कोई गज़ल तेरे नाम न हो जाये
आज लिखते लिखते शाम न हो जाए
कर रहा हूँ इंतज़ार, तेरे इज़हार-ए-मोहब्बत का
इस इंतज़ार में जिंदगी तमाम न हो जाए
नहीं लेता तेरा नाम सर-ए-आम इस डर से
तेरा नाम कहीं बदनाम न हो जाये
मांगता हूँ जब भी दुआ, तू याद आती है
कही जुदाई मेरे प्यार का अंजाम न हो जाये
सोचता हूँ डरता हूँ अक्सर तन्हाई में
उसके दिल में किसी और का मक़ाम न हो जाए
--अज्ञात
खुलते हैं मुझ पे राज़ कईं इस जहां के
खुलते हैं मुझ पे राज़ कईं इस जहां के
उसकी आसीन आँखों में जब झांकता हूँ मैं
--सलमान सईद
थोड़ा सा दर्द दिल में खटकने को रह गया
गम ने तेरे निचोड़ लिया कतरा कतरा खून
थोड़ा सा दर्द दिल में खटकने को रह गया
--दाग देहेलवी
Saturday, October 8, 2011
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता
जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है
ज़ुबाँ मिली है मगर हम_ज़ुबाँ नहीं मिलता
बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले
ये ऐसी आग है जिस में धुआँ नहीं मिलता
तेरे जहान में ऐसा नहीं कि प्यार ना हो
जहाँ उम्मीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता
--शहरयार
Source : http://www.urdupoetry.com/shahryar10.html
Friday, October 7, 2011
जिंदगी कहते थे, ना गुजरेगी ऐसे
तेरी याद में गुज़र ही गयी तनहा
जिंदगी कहते थे, ना गुजरेगी ऐसे
--आलोक मेहता
किस की कैसी, कब की बात कहता हूँ
किस की कैसी, कब की बात कहता हूँ
मैं शायर हूँ, सब की बात कहता हूँ
--आलोक मेहता
Thursday, October 6, 2011
वो जुगनू है लेकिन गुरूर करता है
सादा लफ्ज़ कहाँ इतना सुरूर करता है
ये शायर कोई नशा तो ज़रूर करता है
मैं सूरज हूँ पर नज़र झुका के चलता हूँ
वो जुगनू है लेकिन गुरूर करता है
--सतलज राहत
वादा हैं..मेरा.. कि.. मैं नहीं हारूँगा...
माना वक़्त नहीं.. और.. बाकी कई काम सही...
राह भी हैं.. लम्बी.. और.. ढलती ये शाम सही...
अंजाम से पहले ..खुद को.. ना ..नकारुंगा..
वादा हैं..मेरा.. कि.. मैं नहीं हारूँगा...
जीत के बनेंगी पायदान..चट्टानें मुश्किलों की ..
हिम्मतो से बदलूँगा..लकीरे इन हथेलियों की...
कि हस्ती.. अब अपनी..हर कीमत सवारूँगा
वादा हैं.. मेरा.. कि .. मैं नहीं हारूँगा...
चाहए कितनी ही स्याह.. मायूसी नजर आती हो...
हौसलों कि चांदनी चाहे.. मद्धम हुई जाती हो...
कर मजबूत खुद को.. वक़्त-ऐ-मुफलिसी गुजारूँगा...
वादा हैं .. मेरा.. कि.. मैं नहीं हारूँगा...
आफताब नहीं तो क्या..ऑंखें उम्मीद से रोशन हैं..
ज़माने को नहीं.. तो क्या.. मुझे भरोसा हरदम हैं...
पाउँगा मंजिल ख्वाबो की.. चाँद जमी उतारूंगा...
वादा हैं .. मेरा.. कि.. मैं नहीं हारूँगा...
हार हो या जीत..मेरी हस्ती कोई फर्क ना आ जायेगा
कि 'आलोक' हर हाल यार.. शख्स वही रह जाएगा...
इन फिजूल पैमाइशो पर अब.. खुद को ना उतारूंगा...
वादा हैं .. मेरा.. कि.. मैं नहीं हारूँगा...
आलोक मेहता..
Wednesday, October 5, 2011
कुछ इस तरह मैं अपनी ज़िंदगी तमाम कर दूं
कुछ इस तरह मैं अपनी ज़िंदगी तमाम कर दूं
वक्त-ए-सफर तुमको देखूं और शाम कर दूं
ख़्वाब में भी कोई तेरे सिवा दिखाई न दे
उम्र भर के लिए आँखों को तेरा गुलाम कर दूं
तेरे पहलू की खुशबू से मेहकें मेरी सांसें
और जितनी हैं मेरी सांसें सब तेरे नाम कर दूं
--अज्ञात
Sunday, October 2, 2011
वही कारवां, वही रास्ते, वही जिंदगी, वही मरहले
वही कारवां, वही रास्ते, वही जिंदगी, वही मरहले
मगर अपने अपने मकाम पर कभी तुम नहीं, कभी हम नहीं
--शकील बदायूनी
ये किस मक़ाम पे सूझी तुझे बिछड़ने की
ये किस मक़ाम पे सूझी तुझे बिछड़ने की
अभी तो जा के कहीं दिन संवारने वाले थे
--अज्ञात
Thursday, September 29, 2011
बहुत बेचैन करती है, बहुत बेहाल करती है
बहुत बेचैन करती है, बहुत बेहाल करती है
किसी से chat करती है, किसी को कॉल करती है
--सतलज राहत
Wednesday, September 28, 2011
वही कारवाँ, वही रास्ते, वही जिंदगी वही मरहले
वही कारवाँ, वही रास्ते, वही जिंदगी वही मरहले
मगर अपने अपने मकाम पर, कभी तुम नहीं कभी हम नहीं
--Shakeel Badayuni
Thursday, September 22, 2011
कहा करती थी भूल जाऊँगी शाम होते ही रो पड़ी हो न ?
मेरी किस्मत की हथकड़ी हो न ?
तुम मेरे साथ हर घडी हो न ?
मैं सोच सोच के थक जाता हूँ
तुम मेरी सोच से बड़ी हो न ?
बहुत तड़पा हूँ तुम्हे पाने को
तुम भी तकदीर से लड़ी हो न ?
मुझे इस रास्ते में छोड़ के
तुम मेरी सोचो में चल पड़ी हो न ?
कहा करती थी भूल जाऊँगी
शाम होते ही रो पड़ी हो न ?
मैं तनहा किस तरह रह पाऊंगा
जिंदगी तुम बहुत बड़ी हो न ?
सफर में लुफ्त बहुत आएगा
ठोकरों राह में पड़ी हो न?
बुलंदियों, गुरूर था तुमको
मेरे पैरों में गिर पड़ी हो न ?
सतलज आज तक नहीं भूला
एक लड़की का फुलझड़ी होना
--सतलज रहत
Friday, September 16, 2011
मरहम न सही एक ज़ख्म ही दे दो
मरहम न सही एक ज़ख्म ही दे दो
महसूस तो हो के कोई हमें भूल नहीं
--जावेद अख्तर
Tuesday, September 13, 2011
तुझे यकीन मेरी जान नहीं आएगा
हमारी बातो पे ईमान नहीं आएगा
तो तुझे इश्क का ये ज्ञान नहीं आएगा
अरे नादान मोहब्बत का इम्तेहान है ये
कोई सवाल अब आसान नहीं आएगा
मुझे खुद उठ के आसमान चूम लेना है
मेरी ज़मीन पे आसमान नहीं आएगा
है अब ये हाल के सोती नहीं वो रातो में
उसे लगा था मेरा ध्यान नहीं आएगा
आ ज़रा बैठ हम दो-चार घडी बात करे
इतनी जल्दी तो इत्मिनान नहीं आएगा
मुझे यकीन है मोहब्बत में जान भी दे दूं
तुझे यकीन मेरी जान नहीं आएगा
भटकता हू भरी बरसात में सूखा सूखा
अब भी मिलने, क्या बे-ईमान नहीं आएगा?
तू बस ये मान वो आएगा, तो वो आएगा
नहीं आएगा, तो ये मान नहीं आएगा
जो भी उलझन है तेरे दिल कि वो बता मुझको
झिझक रहेगी तो फिर ज्ञान नहीं आएगा
कई ठिकाने इसी शहर में पता है मुझे
कोई हमारे दरमियान नहीं आएगा
हिजरत कर गए सब ख्वाब मेरी आँखों से
के दिल में अब कोई अरमान नहीं आएगा
फिर उसी इश्क के पंजे में फंस गया 'सतलज'
कोई बचाने तेरी जान नहीं आएगा
--सतलज राहत
Friday, September 9, 2011
Thursday, September 8, 2011
बहुत मुश्किल सही हालात लेकिन
बहुत मुश्किल सही हालात लेकिन
तुम्हे अपना बनाना चाहता हूँ
--आमिर बिन अली
Tuesday, September 6, 2011
लोग सीने में क़ैद रखते हैं
लोग सीने में क़ैद रखते हैं
हमने सर पे चढ़ा लिया दिल को !!!
--दशमेश गिल फिरोज
Sunday, September 4, 2011
रवायतोँ की सफेँ तोड़कर बढ़ो वरना
रवायतोँ की सफेँ तोड़कर बढ़ो वरना
जो तुमसे आगे हैँ वो रास्ता नहीँ देँगे
--राहत इंदोरी
सफेँ=कतारेँ
दिल सुलगता है तेरे सर्द रवैये पे मेरा
दिल सुलगता है तेरे सर्द रवैये पे मेरा
देख इस बर्फ ने क्या आग लगा रखी है
--अनवर मसूद
चैन लेने नहीं देते ये किसी तौर मुझे
चैन लेने नहीं देते ये किसी तौर मुझे
तेरी यादों ने जो तूफ़ान उठा रखा है
--वसी शाह
काफिले रेत हुए दश्त-ए-जुनूं में कितने
काफिले रेत हुए दश्त-ए-जुनूं में कितने
फिर भी आवारा मिजाजों का सफर जारी है
--जावेद अख्तर
हम बुलाएं तो उन्हें काम निकल आते हैं
बेसबब यूं ही सर-ए-शाम निकल आते हैं
हम बुलाएं तो उन्हें काम निकल आते हैं
क्या बताऊँ इन हुस्न वालों की ए जावेद
हम बुलाएं तो परदा, वरना सर-ए-आम निकल आते हैं
--जावेद अख्तर
Friday, September 2, 2011
मैं खुद ही लौट आऊंगा मुझे नाकाम होने दो
अभी सूरज नहीं डूबा ज़रा सी शाम होने दो
मैं खुद ही लौट आऊंगा मुझे नाकाम होने दो
मुझे बदनाम करने के बहाने ढूँढ़ते हो क्यूँ
मैं खुद हो जाऊँगा बदनाम पहले नाम होने दो
अभी मुझ को नहीं करना है एतराफ-ए-शिकस्त अपना
मैं सब तसलीम कर लूँगा ये चर्चा आम होने दो
मेरी हस्ती नहीं अनमोल फिर बिक नहीं सकता
वफायें बेच लेना पर ज़रा नीलाम होने दो
नए आगाज़ में ही हौसला क्यूँ तोड़ बैठे हो
सभी कुछ तुम ही जीतोगे ज़रा अंजाम होने दो
--अज्ञात
Tuesday, August 30, 2011
कभी कभी यूं ही रो पड़ती हैं ये आंखें
कभी कभी यूं ही रो पड़ती हैं ये आंखें
उदास होने का हमेशा कोई सबब नही होता
--अज्ञात
Monday, August 29, 2011
बदनाम है फिरदौस इस जहाँ में जिनके वासते
बदनाम है फिरदौस इस जहाँ में जिनके वासते
वो दिल जानता ही नहीं, फिरदौस किस का नाम है
Sunday, August 28, 2011
दिल में अब यूँ तेरे भूले हुये ग़म आते हैं
दिल में अब यूँ तेरे भूले हुये ग़म आते हैं
जैसे बिछड़े हुये काबे में सनम आते हैं
इक इक कर के हुये जाते हैं तारे रौशन
मेरी मन्ज़िल की तरफ़ तेरे क़दम आते हैं
रक़्स-ए-मय तेज़ करो, साज़ की लय तेज़ करो
सू-ए-मैख़ाना सफ़ीरान-ए-हरम आते हैं
कुछ हमीं को नहीं एहसान उठाने का दिमाग
वो तो जब आते हैं माइल-बा-करम आते हैं
और कुछ देर ना गुज़रे शब-ए-फ़ुर्क़त से कहो
दिल भी कम दुखता है वो याद भी कम आते हैं
--फैज़ अहमद फैज़
Source : http://www.urdupoetry.com/faiz24.html
दिल में अब यूं तेरे भूले हुए ग़म आते हैं
दिल में अब यूं तेरे भूले हुए ग़म आते हैं
जैसे बिछड़े हुए क़ाबे में सनम आते हैं
--फैज़ अहमद फैज़
आप ही अपनी अदाओं पे ज़रा गौर करें फराज़
आप ही अपनी अदाओं पे ज़रा गौर करें फराज़
हम अगर अर्ज़ करेंगे, तो शिकायत होगी
--अहमद फराज़
तेरी बेरूखी का शिकवा मैं किस से करूँ फराज़
तेरी बेरूखी का शिकवा मैं किस से करूँ फराज़
यहाँ हर शक्स तुझे मेरा महबूब समझता है
--अहमद फ़राज़
ये बार बार जो आंखों को मल के देखते हैं
अभी कुछ और करिश्में गज़ल के देखते हैं
फ़राज़ अब ज़रा लहज़ा बदल के देखते हैं
तू सामने है, तो फिर क्यूँ यकीन नहीं आता
ये बार बार जो आंखों को मल के देखते हैं
--अहमद फ़राज़
सिर्फ़ चहरे की उदासी से भर आये आँसू फ़राज़
सिर्फ़ चहरे की उदासी से भर आये आँसू फ़राज़
दिल का आलम तो अभी आपने देखा ही नही
--अहमद फ़राज़
कुछ तो फ़राज़ हमने पलटने मे देर की
कुछ तो फ़राज़ हमने पलटने मे देर की
कुछ उसने इन्तज़ार ज़्यादा नहीं किया
--अहमद फ़राज़
हमने सोचा के दो चार दिन की बात होगी लेकिन
हमने सोचा के दो चार दिन की बात होगी लेकिन
तेरे ग़म से तो उम्र भर का रिश्ता निकल आया
--अहमद फ़राज़
हम इस गुरूर में रहते हैं कि हम अपनी ही चीज़ें मांगा नही करते
वो इस अना में रहते हैं कि हम उनको उन से मांगें फ़राज़
हम इस गुरूर में रहते हैं कि हम अपनी ही चीज़ें मांगा नही करते
--अहमद फ़राज़
सोचा था ये सवाल, न सोचा करेंगें हम
वो किस तरह मिला था, जुदा कैसे हो गया फ़राज़
सोचा था ये सवाल, न सोचा करेंगें हम
--अहमद फ़राज़
कुछ तो होता है मोहब्बत में जुनून का असर फ़राज़
कुछ तो होता है मोहब्बत में जुनून का असर फ़राज़
और कुछ लोग दीवाना बना देते हैं
--अहमद फ़राज़
यूँ ही इसे लोग मोहब्बत समझ बैठे फ़राज़
यूँ ही इसे लोग मोहब्बत समझ बैठे फ़राज़
वो शक्स मुझे जान से प्यारा है और बस
--अहमद फ़राज़
यूँ ही इसे लोग मोहब्बत समझ बैठे हैं फ़राज़
यूँ ही इसे लोग मोहब्बत समझ बैठे हैं फ़राज़
वो शक्स मुझे जान से प्यारा है और बस
--अहमद फराज़
अब तो इस कदर बेगैरतें बढ़ गयी है फ़राज़
अब तो इस कदर बेगैरतें बढ़ गयी है फ़राज़
शेर किसी का हो नाम मेरा ठोक देते है
--अज्ञात
कितने मसरूफ सभी यार पुराने निकले
हम भी असीम की तरह कितने दीवाने निकले
उस के दर पर इसी उम्मीद पे बैठा हूँ फ़क़त
काश खैरात ही करने के बहाने निकले
मेरे दुःख दर्द को सुनने का नहीं वक़्त इन्हें
कितने मसरूफ सभी यार पुराने निकले
सारे कन्धों पे है ज़ंजीर-ए-गुलामी का वज़न
कौन गैरत का जनाज़े को उठाने निकले
ख्वाब में गम है खुली आँख से ये कौम मेरी
है यही वक़्त कोई इसको जगाने निकले
पर्दा-ए-गैब में बैठा है जो हादी असीम
उसको आवाज़ दो अब दीं बचाने निकले
--असीम कौमी
Saturday, August 27, 2011
इतना टूटा हूँ के छूने से बिखर जाऊँगा
इतना टूटा हूँ के छूने से बिखर जाऊँगा
अब अगर और दुआ दोगे तो मर जाऊँगा
--अज्ञात
एक बहुत मशहूर गज़ल भी है इस पर...
मैं तो इसी में खुश हूँ, के तुम खुश हो वरना
मैं तो इसी में खुश हूँ, के तुम खुश हो वरना
उठा लूं हाथ अगर दुआ के लिए तो, तुम अब भी मेरे हो जाओगे
--अज्ञात
Thursday, August 25, 2011
एक ये ख्वाहिश के कोई ज़ख्म न देखे दिल का
एक ये ख्वाहिश के कोई ज़ख्म न देखे दिल का
एक ये हसरत कि कोई देखने वाला होता
--जावेद अख्तर
Source : https://www.facebook.com/JavedAkhtarJadoo?sk=wall
Sunday, August 21, 2011
तेरी बेरुखी का शिकवा मैं किस से करूँ
तेरी बेरुखी का शिकवा मैं किस से करूँ
यहाँ हर शक्स तुझे मेरा दोस्त समझता है
--अज्ञात
तुम आये तो इस रात की औकात बनेगी
सौ चाँद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी
तुम आये तो इस रात की औकात बनेगी
उनसे यही कह आये कि हम अब न मिलेंगे
आखिर कोई तरकीब-ए-मुलाक़ात बनेगी
ये हम से न होगा के किसी एक को चाहें
ए-इश्क ! हमारी न तेरे साथ बनेगी
हैरत कदा-ए-हुस्न कहाँ है अभी दुनिया
कुछ और निखार ले तो तिलिस्मात बनेगी
ये क्या के बढते चलो, बढते चलो आगे
जब बैठ के सोचेंगे तो कुछ बात बनेगी
--जान निसार अख्तर
Saturday, August 20, 2011
सांस भी लूं तो उसकी महक आती है
सांस भी लूं तो उसकी महक आती है
उसने ठुकराया है मुझे इतना करीब आने के बाद
--अज्ञात
कल यही ख्वाब हकीकत में बदल जायेंगे
कल यही ख्वाब हकीकत में बदल जायेंगे
आज तो ख़्वाब फक़त ख़्वाब नज़र आते हैं
--जान निसार अख्तर
Sunday, August 14, 2011
अब किसी शक्स की आदत नहीं होती मुझको
अब तेरी याद से वेहशत नहीं होती मुझको
ज़ख्म खुलते हैं, अजीयत नहीं होती मुझको
अब कोई आये, चला जाए, मैं खुश रहता हूँ
अब किसी शक्स की आदत नहीं होती मुझको
ऐसा बदला हूँ, तेरे शहर का पानी पी कर
झूठ बोलूँ तो नदामत नहीं होती मुझको
है अमानत में खयानत, सो किसी की खातिर
कोई मरता है तो हैरत नहीं होती मुझको
इतना मसरूफ हूँ जीने की हवस में मोहसिन
सांस लेने की भी फुरसत नहीं होती मुझको
--मोहसिन नकवी
Monday, August 8, 2011
तुझे महसूस ही करना है मुझको
तेरे वादों मे जब तक दम रहेगा
ये मेरा हौंसला कायम रहेगा
तेरे अंदर वही हवा रहेगी
मेरे अंदर वही आदम रहेगा
ज़माना चाहतों का आ गया है
कई दिन तक यही मौसम रहेगा
तुझे महसूस ही करना है मुझको
तुझे लिखने लगूं तो कम रहेगा
सोच पथरा गई हैं सब की सब
तेरा ख्याल पर रेशम रहेगा
कुछ दिनों तो हुमारे साथ थीं तुम
बहुत दिन अब तुम्हारा गम रहेगा
मेरी पेशनी पे ये बल रहेगा
तुम्हारी ज़ुलफ मे ये ख़म रहेगा
कोई भी ज़ख़्म दे मुझे लेकिन
तुम्हारे पास ही मरहम रहेगा
ख्वाब आयेंगे पर बेजान हो कर
दिल भी धड़केगा पर बेदम रहेगा
मेरे बगैर तेरे शानो पर
जो भी आँचल रहेगा, नम रहेगा
रात अपनी पे उतर आई है
सवेरे हर तरफ मातम रहेगा
ये भी दिल तोड़ क जायेगी एक दिन
मुझे इस बात का भी गम रहेगा
बिछड़ के टूट-फूट जाऊंगा
तुझे अफ़सोस थोड़ा कम रहेगा
'सतलज' तेरी ही जयकार होगी
'सतलज' तेरा ही परचम रहेगा!!!
--सतलज राहत
Friday, August 5, 2011
चंद सिक्कों में बिक जाता है यहाँ ज़मीर इंसान का
चंद सिक्कों में बिक जाता है यहाँ ज़मीर इंसान का
कौन कहता है मेरे देश में महंगाई बहुत है
--अज्ञात
Monday, July 25, 2011
मै और उसको भुला दूं , ये कैसी बातें करते हो फ़राज़
मै और उसको भुला दूं , ये कैसी बातें करते हो फ़राज़ .......!!!
सूरत तो फिर सूरत है वो नाम भी अच्छा लगता है ........!!!
--अहमद फराज़
Sunday, July 24, 2011
हम अकेले तो नहीं...
बस इसी बात पे, दिल को सुकूं आ जाता है
हम अकेले तो नहीं, जिसे कोई याद आता है
--अमोल सहारन
हम समझते थे के अब यादो की किश्ते चुक चुकीं
हम समझते थे के अब यादो की किश्ते चुक चुकीं
रात तेरी याद ने फिर से तकाजा कर दिया
--तुफैल चतुर्वेदी
एक गज़ल तुझ पे कहूँ दिल का तकाजा है बहुत
एक गज़ल तुझ पे कहूँ दिल का तकाजा है बहुत
इन दिनों खुद से बिछड जाने का इरादा है बहुत
--कृष्ण बिहारी नूर
जहाँ तुम चलते हो, वो हर किसी का रास्ता है
दोस्त ये जो चीता-कशी का रास्ता है
ये शोहरत का नहीं है, ख़ुदकुशी का रास्ता है
जहाँ हम चलते हैं वहाँ सिर्फ हम ही चलते हैं
जहाँ तुम चलते हो, वो हर किसी का रास्ता है
--सतलज राहत
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मुझको तो होश नहीं, तुमको खबर हो शायद
मुझको तो होश नहीं, तुमको खबर हो शायद,
लोग कहते हैं कि तुमने मुझे बर्बाद किया।
-'जोश' मलीहाबादी
Source : http://www.sheroshayari.org/urdu-poetry/b/bewafai/bewafai-32.html
या तुम बदल गये हो या हम बदल गये हैं।
बर्ताव दोस्ती के हद से निकल गये हैं,
या तुम बदल गये हो या हम बदल गये हैं।
-'जोश' मलीहाबादी
चलो बस हो चुका मिलना, न तुम खाली, न हम खाली।
तुम्हें गैरों से कब फुरसत, हम अपने गम से कब खाली,
चलो बस हो चुका मिलना, न तुम खाली, न हम खाली।
-हसरत मोहनी
जमाने की अदावत का सबब थी दोस्ती जिसकी
जमाने की अदावत का सबब थी दोस्ती जिसकी,
अब उनको दुश्मनी है हमसे, दुनिया इसको कहते हैं।
-बेखुद देहलवी
अदावत=दुश्मनी
सबब=कारण
गैरों से कहा तुमने, गैरों से सुना तुमने
गैरों से कहा तुमने, गैरों से सुना तुमने
कुछ हमसे तो कहा होता, कुछ हमसे तो सुना होता
--हसरत चिराग हसन
Monday, July 18, 2011
दिल आख़िर तू क्यूँ रोता है
जब जब दर्द का बादल छाया
जब गम का साया लहराया
जब आँसू पलकों तक आया
जब यह तन्हा दिल घबराया
हमने दिल को ये समझाया
दिल आख़िर तू क्यूँ रोता है
दुनिया में यूँही होता है
यह जो गहरे सन्नाटे हैं
वक़्त ने सबको ही बाँटे हैं
थोड़ा गम है सबका क़िस्सा
थोड़ी धूप है सबका हिस्सा
आँख तेरी बेकार ही नम है
हर पल एक नया मौसम है
क्यूँ तू ऐसे पल खोता है
दिल आख़िर तू क्यूँ रोता है
--जावेद अख्तर
From Movie ZINDAGI NA MILEGI DOBARA
Sunday, July 17, 2011
एक सस्ती शय का ऊंचे भाव सौदा कर लिया
उसके वादे के एवज में दे डाली जिंदगी
एक सस्ती शय का ऊंचे भाव सौदा कर लिया
--तौफेल चतुर्वेदी
Monday, July 11, 2011
एक अधूरी सी कहानी है मुकम्मल कर दे
फरेब दे दे इश्क़ मे मुझे पागल कर दे
एक अधूरी सी कहानी है मुकम्मल कर दे
नही औकात के सोचों को लफ़्ज़ों मे ढालूं
मेरे खुदा मेरे अहसास को ग़ज़ल कर दे
तू मेरे वास्ते बहाए तो अज़ीम खुदा
तेरी आँखो के हर आँसू को गंगाजल कर दे
उसी ने सोच के सब मुश्किले बनाई हैं
वो अगर चाहे तो सब मुश्किलो का हल कर दे
मैं जो भी चाहू ज़िंदगी मे उससे पा के रहूँ
मेरे खुदा मुझे इस बात पे अटल कर दे
यकीन रख वो हक़ीकत मे मुझको ढूँढेगी
उसके ख्वाबो मे ज़रा सा मेरा दखल कर दे
बात अच्छी है के हर बात मान जाता है
वो ज़िद पे आए तो हर बात मे खलल कर दे
'सतलज' ये पहली मुलाकात बहुत अच्छी थी
उसके होंठो की हर इक बात को ग़ज़ल कर दे
-सतलज राहत
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Saturday, July 9, 2011
एक हम थे के बिक गये ख़ुद ही
कभी आंसू कभी ख़ुशी बेची
हम ग़रीबों ने बेकसी बेची
चन्द सांसे खरीदने के लिये
रोज़ थोदी सी ज़िन्दगी बेची
जब रुलाने लगे मुझे साये
मैन ने उक़्ता के रौशनी बेची
एक हम थे के बिक गये ख़ुद ही
वरना दुनिया ने दोस्ती बेची
--अबू तालिब
झूठी तोहमत लगाए जा रहा है
झूठी तोहमत लगाए जा रहा है
यही गम मुझको खाए जा रहा है
मुझे यादें जलाए जा रही हैं
मुझे बादल भीगाए जा रहा है
तेरे आने की कुछ उम्मीद नही
तेरा ख्याल आए जा रहा है
धूप मे ही करेगा याद मुझको
अभी वो साए साए जा रहा है
मुझसे कुछ ख़ैरियत भी पूछ मेरी
अपने किस्से सुनाए जा रहा है
मेरा ये है, के मैं वही पे हूँ
वक़्त का ये है, जाए जा रहा है
गहरा ज़ख़्म है कोई दिल मे
मुसलसल मुस्कुराए जा रहा है
इतने नखरे कहा उठाने थे
कितने नखरे उठाए जा रहा है
छुपाना याद नही है उसको
बड़ी बातें बनाए जा रहा है
वही तुझको बुलाना भूल गया
तो तू क्या बिन बुलाए जा रहा है
मेरी सोचो मे आने लग गया है
मेरी नींदें चुराए जा रहा है
मुझे बस तुझसे यही कहना है
ये कैसे दिन दिखाए जा रहा है
मैं कोई अपने काम आ ना सका
खुदा भी आज़माए जा रहा है
'सतलज' मार रहा है खुद को
अपना लिखा मिटाए जा रहा है!!!
--सतलज राहत
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Friday, July 8, 2011
अब इसका ज़िक्र भी सच्चाइयों में आता है
अब इसका ज़िक्र भी सच्चाइयों में आता है
मेरा दुश्मन भी मेरे भाइयों में आता है
लब पे नाम तो बरसो तलाक नहीं आता
तेरा ख़याल पर तन्हाइयों में आता है
हम शिकार भी दंगाइयों का होते हैं
हमारा नाम भी दंगाइयों में आता है
कभी मैं उसको रोने से रोकता ही नहीं
मुझे सुकून ही गहराइयों में आता है
तुम्हारे साथ जो तन्हाइयों में रहता है
वो मेरे पास भी तन्हाइयों में आता है
मेरा मासूम सा बचपन जो खो गया है कहीं
अभी वो सुबह की अंगडाइयों में आता है
वो अब सुन्हाई भी खामोशियों में देता है
वो अभी दिखाई भी परछाइयों में आता है
सुना है उसकी आँखें भीग जाती हैं
सतलज याद जब तन्हाइयों में आता है
--सतलज राहत
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मेरी किस्मत बदल गयी साली
हथेली से फिसल गयी साली
जिंदगी थी निकल गयी साली
मेरी किस्मत में तुझे पाना था
मेरी किस्मत बदल गयी साली
वो खुशी है तो मुझे मिल न सकी
वो बाला है तो टल गयी साली
कहा तो था के बेवफा है वो
देख फिर से बदल गयी साली
ज़ख्म फिर से वही उभर आये
फिर वही बात चल गयी साली
मुझसे बस बेवफाई की उसने
गैर को कैसे फल गयी साली
न मिलेंगे ये बात तय है मगर
तमन्ना फिर मचल गयी साली
मौत सब से बड़ी खिलाड़ी है
आखिर चाल चल गयी साली
एक तारीख बनाना थी इससे
तमाशो से बहल गयी साली
अभी तो जिंदगी को जाना था
जिंदगी फिर बदल गयी साली
हसी सच्ची तो नहीं थी मेरी
चला अच्छा है जल गयी साली
तुम्हारी याद काली नागिन है
मेरी रातें निगल गयी साली
जिंदगी भी बिगड गयी सतलज
तेरी सोहबत में ढल गयी साली
--सतलज राहत
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Tuesday, July 5, 2011
तुझसे बिछड़ा अगर मैं तो मर जाऊँगा
तुझसे बिछड़ा अगर मैं तो मर जाऊँगा
साथ लेकर भी तुझको किधर जाऊँगा
अब मुझे जिंदगानी में आने भी दे
मैं तेरी रूह के ज़ख्म भर जाऊँगा
मैं तो राह-ए-वफ़ा पे चला ही नहीं
उसको लगता था हद से गुज़र जाऊंगा
मुझको इस जिंदगानी ने मोहब्बत न दी
मैंने सोचा था कुछ दिन ठहर जाऊंगा
बस तेरे नाम से जग में बदनाम हूँ
मैं मरा, जो अगर तेरे सर जाऊँगा
खुद तमाशा भी करता है अब इश्क का
उसने मुझसे कहा था मुकर जाऊँगा
दुनिया ऐसी ही चलती रहेगी इतनी मगर
तू भी मर जायेगी मैं भी मर जाऊंगा
मैंने सोचा नहीं, सोचना था मुझे
इतनी जल्दी कहाँ से सुधर जाऊंगा
एक दिन इस उदासी की तस्वीर में
इश्क के सैकडो रंग भर जाऊँगा
तेरे शहर में, तेरी गलियों में फिर
मुझको जाना नहीं था, मगर जाऊँगा
इश्क की राह में खुद की कुर्बानियां
मैं बहुत दे चुका अब तो घर जाऊँगा
सारी दुनिया फसादो से आबाद है
अब जो छुट्टी मिली चाँद पर जाऊँगा
मुझको अपने खयालो से आज़ाद कर
तू तो होगा वहाँ, मैं जिधर जाऊँगा
मैंने दुनिया सजाई है तेरे लिए
सब चला जाएगा मैं अगर जाऊँगा
मैं तो सतलज हूँ दरिया सा बहता हुआ
एक दरिया हूँ, फिर भी ठहर जाऊँगा
--सतलज राहत
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Sunday, July 3, 2011
हमारे साथ भी गुज़ार कोई
न कश्ती है न पतवार कोई
ए खुदा भेज मददगार कोई
तेरी किस्मत में कितनी शामें हैं
हमारे साथ भी गुज़ार कोई
लोग शैतान या फ़रिश्ते हैं
खुदा इंसान भी तो उतार कोई
खुद से बाहर निकल नहीं पाता
बैठा रहता है पहरेदार कोई
तुझे पता भी है हर पल तेरा
करता रहता है इंतज़ार कोई
खुदा वही पे मुसल्लत कर दे
कबूतर के लिए मीनार कोई
पता चलता है हिचकियों से मुझे
याद करता है बार बार कोई
हमसे लिहाज़ अब नहीं होगा
सामने आये अब की बार कोई
बहुत ढूंढा हमें न मिल पाया
तुम्हारी बात का आधार कोई
बस यही चाहते हैं हम 'सतलज'
ढूँढ लाये तुझे एक बार कोई
--सतलज राहत
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Monday, June 27, 2011
फूल खिल जाये वो जिधर निकले
जन्नतें सारी फिर उधर निकले
फूल खिल जाये वो जिधर निकले
मुस्कुरा दे जो आसमां की तरफ
सब दुआओं में फिर असर निकलें
रात आती हैं उसकी ख्वाइश में
चाँद तारें भी रात भर निकलें
वो गुजर जाये जिस भी रस्ते से
महका महका सा वो सफ़र निकले
मंजिलें ढूँढती हैं खुद उसको
हर सफ़र बिन किये ही सर निकले
नाम लिख ले जो उसका कागज पर
वही दुनिया में सुखनवर निकले
दिन गुजर जाता हैं ये लम्हों में
उसके संग रात मुख़्तसर निकले.............Dr.Rohit "AYAAN"
Friday, June 24, 2011
चाँद के साथ कई दर्द पुराने निकले
चाँद के साथ कई दर्द पुराने निकले
कितने ग़म थे जो तेरे ग़म के बहाने निकले
हिज्र कि चोट अजब सन्ग-शिकन होती है
दिल की बेफ़ैज़ ज़मीनों से ख़ज़ाने निकले
[hijr = separation; sang = stone; shikan = wrinkle/crease/crack]
[befaiz = that which does not yield anything]
उम्र गुज़री है शब-ए-तार में आँखें मलते
किस उफ़क़ से मेरा ख़ुर्शीद ना जाने निकले
[shab-e-taar = dark night; ufaq = horizon; Khurshiid = sun]
कू-ए-क़ातिल में चले जैसे शहीदों का जुलूस
ख़्वाब यूँ भीगती आँखों को सजाने निकले
[kuu-e-qaatil = beloved's street; juluus = procession]
दिल ने इक ईंट से तामीर किया ताज महल
तू ने इक बात कही लाख फ़साने निकले
[ii.nT = brick; taamiir = (to) construct]
मैंने 'अमजद' उसे बेवास्ता देखा ही नहीं
वो तो ख़ुश्बू में भी आहट के बहाने निकले
[bevaastaa = without reason]
--अमजद इस्लाम अमजद
Source : http://www.urdupoetry.com/amjad02.html
हमें जो छु लिया तो पिघल जाओगी जाना
पत्थर हो शबनम में बदल जाओगी जाना
हमें जो छु लिया तो पिघल जाओगी जाना
इस राह-ए-मोहब्बत में बहकते हैं सभी लोग
थामो हमारा हाथ संभल जाओगी जाना
तुम गैर से मिली हो, हमने तो सह लिया
हम गैर से मिलेंगे तो जल जाओगी जाना
उन प्यार के लम्हों में ये सोचा भी नहीं था
मौसम की तरह तुम भी बदल जाओगी जाना
ये रिश्ता जो टूटा तो मर जायेंगे हम तो
तुम को तजुर्बा है, संभल जाओगी जाना
अपनी नरम हथेलियों पे लिख लो मेरा नाम
पढ़ना उदासियों में बहल जाओगी जाना
'सतलज' से किसी हाल में आँखें न मिलाना
तुम अपने ही हाथो से निकल जाओगी जाना
--सतलज राहत
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Monday, June 20, 2011
तुम्हे 'सतलज' उसे पाने की खातिर
वफ़ा को आजमाना चाहिए था
हमारा दिल दुखाना चाहिए था
आना, न आना मेरी मर्ज़ी है
तुमको तो बुलाना चाहिए था
हमारी ख्वाहिश एक घर की थी
उसे सारा ज़माना चाहिए था
मेरी आँखें कहाँ नाम हुई थी
समंदर को बहाना चाहिए था
जहाँ पर पहुंचा मैं चाहता हूँ
वहाँ पे पहुँच जाना चाहिए था
हमारा ज़ख्म पुराना बहुत है
चरागार भी पुराना चाहिए था
मुझसे पहले वो किसी और की थी
मगर कुछ शायराना चाहिए था
चलो माना ये छोटी बात है मगर
तुम्हे सब कुछ बताना चाहिए था
तेरा भी शहर में कोई नहीं था
मुझे भी इक ठिकाना चाहिए था
के किस को किस तरह से भूलते हैं
तुम्हे मुझको सिखाना चाहिए था
ऐसा लगता है लहू में हमको
कलम को भी डुबाना चाहिए था
अब मेरे साथ के तंज न कर
तुझे जाना था, जाना चाहिए था
क्या बस मैंने ही की बेवफाई ?
जो भी सच है बताना चाहिए था
मेरी बर्बादी पे वो चाहता है
मुझे भी मुस्कुराना चाहिए था
बस एक तू ही मेरे साथ में है
तुझे भी रूठ जाना चाहिए था
हमारे पास जो ये फन है मिया
हमें इस से कमाना चाहिए था
अब ये ताज किस काम का है
हमें सर को बचाना चाहिए था
उसी को याद रखा उम्र भर
के जिसको भूल जाना चाहिए था
मुझसे बात भी करनी थी उसको
गले से भी लगाना चाहिए था
उसने प्यार से बुलाया था
हमें मर के भी आना चाहिए था
तुम्हे 'सतलज' उसे पाने की खातिर
कभी खुद को गवाना चाहिए था
--सतलज राहत
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Sunday, June 19, 2011
मेरे ज़ख्मो में उसकी दास्तान हो जैसे
सच में ही बहुत ऊंची उड़ान हो जैसे
मेरे पैरों के नीचे आसमान हो जैसे
मुझे दुनिया ने तमाशा बना रखा है
हर एक सांस नया इम्तिहान हो जैसे
बिछड के तुझसे लेटा हूँ अपने कमरे में
बहुत ही लंबे सफर की थकान हो जैसे
तुझे देखूं तो एक पल तो ऐसा लगता है
तू सच में मेरे लिए परेशान हो जैसे
हर एक पल, हर लम्हा बढती जाती है
तुम्हारी याद नहीं हो, लगान हो जैसे
तेरा ख़याल बस ख़याल, बस ख़याल तेरा
सारी दुनिया से ही दिल बदगुमान हो जैसे
वो मेरे जिस्म को इस तरह तकती रहती है
मेरे ज़ख्मो में उसकी दास्तान हो जैसे
मैं खुद के सामने ज़ाहिर तो ऐसा करता हूँ
तुझे भुला के बहुत इत्मिनान हो जैसे
'सतलज' तेरे कदम चूमते हैं ये रास्ते
हर एक मंजिल पे तेरा निशान हो जैसे
--सतलज राहत
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Wednesday, June 15, 2011
इक ही शख़्स था जहान में क्या
ख़ामोशी कह रही है कान में क्या
आ रहा है मेरे गुमान में क्या
अब मुझे कोई टोकता भी नहीं
यही होता है खानदान में क्या
बोलते क्यों नहीं मेरे हक़ में
आबले पड़ गये ज़ुबान में क्या
मेरी हर बात बे-असर ही रही
नुक़्स है कुछ मेरे बयान में क्या
वो मिले तो ये पूछना है मुझे
अभी हूँ मैं तेरी अमान में क्या
शाम ही से दुकान-ए-दीद है बंद
नहीं नुकसान तक दुकान में क्या
यूं जो तकता है आसमान को तू
कोई रहता है आसमान में क्या
ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ता
इक ही शख़्स था जहान में क्या
--जौन इलिया
Tuesday, June 14, 2011
इश्क के मारे
इस दुनिया में हर बिगड़ी बन जाती है
इश्क के मारे, इश्क के मारे रहते हैं
-- सतलज राहत
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ठहरे हो क्यूं यहाँ पे, गुज़र क्यों नहीं जाते
ठहरे हो क्यूं यहाँ पे, गुज़र क्यों नहीं जाते
इतनी बुरी है दुनिया, तो मर क्यों नहीं जाते
तुमको पता है, ज़ख्मों से, पैरों से, बारहा
खुद ठोकरों ने पूछा, सुधर क्यों नहीं जाते
[बारहा=बार बार]
किस की पनाह में तुझको गुज़ारे ऐ जिंदगी
रास्तों ने भी तो कह दिया, घर क्यों नहीं जाते
बर्बाद हो रही है निभाने में जिंदगी
जो कह दिया है उस से मुकर क्यों नहीं जाते
बिछड़ा अगर मैं तुमसे तो मर जाऊँगा जानम
तुमको डरा रहा हूँ मैं, डर क्यों नहीं जाते
परवरदिगार मेरे मुकद्दर में हिज्र क्यों
दिन सारे मोहब्बत में गुज़र क्यों नहीं जाते
मेरी वफ़ा की राह में चाहत में कई बार
मरने का कहते आये हो, मर क्यों नहीं जाते
कितनी हसीं जुल्फें हैं, चेहरा गुलाब है
क्या बात है ख्यालों इधर क्यों नहीं जाते
इस मोड से अब तेरे मेरे रास्ते अलग हैं
इस मोड पे कुछ देर ठहर क्यों नहीं जाते
सौ बार तमन्ना का मेरी खून किया है
तुम अब मेरी नज़रों से उतर क्यों नहीं जाते
दावे से इन्तेहा यही ज़ब्त करने की है
'सतलज' सहोगे कितना बिखर क्यों नहीं जाते
--सतलज राहत
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चराग बन के जल सकेगा क्या ?
चराग बन के जल सकेगा क्या ?
मोम जैसा पिघल सकेगा क्या?
तूने जूते तो पहले लिए मेरे
चाल भी मेरी चल सकेगा क्या ?
--सतलाज राहत
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Sunday, June 12, 2011
मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे
मेरे दुश्मन तू मेरी दोस्ती को तरसे
मुझे ग़म देने वाले तू खुशी को तरसे
तू फूल बने पतझड़ का, तुझ पे बहार न आए कभी
मेरी ही तरह तू तड़पे तुझको क़रार न आए कभी
जिये तू इस तरह के ज़िंदगी को तरसे
इतना तो असर कर जाएं मेरी वफ़ाएं ओ बेवफ़ा
जब तुझे याद आएं अपनी जफ़ाएं ओ बेवफ़ा
पशेमां होके रोए, तू हंसी को तरसे
तेरे गुलशन से ज़्यादा, वीरान कोई वीराना न हो
इस दुनिया में कोई तेरा, अपना तो क्या, बेगाना न हो
किसी का प्यार क्या तू, बेरुख़ी को तरसे
--आनंद बख्शी
Sunday, June 5, 2011
वो एक रोज़ न आये तो याद आये बहुत
कभी कभी तेरा मैखाना याद आये बहुत
की एक बूँद भी न पी और लडखडाये बहुत
किताबे दिल को जो पानी में फ़ेंक आये थे
तेरे दिए हुए कुछ फूल याद आये बहुत
मिला था राह में एक आंसुओं का सौदागर
हम उसकी आँख के मोती खरीद लाये बहुत
वो रोज़ रोज़ जो बिछड़े तो कौन याद करे
वो एक रोज़ न आये तो याद आये बहुत
--अज्ञात
मुसीबतों से उभरती है शक्सियत यारो
मुसीबतों से उभरती है शक्सियत यारो
जो पत्थरों से न उलझे वो आइना क्या है
--वसीम बरेलवी
हमें भूल जाना क़सम दे रहे हैं
बड़ी बेबसी है जो गम दे रहे हैं
हमें भूल जाना क़सम दे रहे हैं
जो दिल में कभी थी, उसी आरज़ू का
मोहब्बत से हो की उसी गुफ्तगू का
तुम्हे वास्ता हम सनम दे रहे हैं
हमें भूल जाना कसम दे रहे हैं
पलक पे रखेंगे तुम्हे सोचते थे,
कभी गम न देंगे तुम्हे, सोचते थे
मगर देखो आज सितम दे रहे हैं
हमें भूल जाना कसम दे रहे हैं
तुम्हारी नज़र से हँसे हर नज़ारे
क़दम दर क़दम हर खुशी हो तुम्हारे
दुआ जाते जाते, ये हम दे रहे हैं
हमें भूल जाना क़सम दे रहे हैं
हमें बेखुदी ने किया आज गाफिल
नहीं हैं तुम्हारी मोहब्बत के काबिल
इशारा बहकते क़दम दे रहे हैं
हमें भूल जाना क़सम दे रहे हैं
--जिगर शियोपुरी
Wednesday, June 1, 2011
जी जानता है
लुत्फ़ इश्क़ में पाए हैं कि जी जानता है
रंज भी इतने उठाए हैं कि जी जानता है
जो ज़माने के सितम हैं वो ज़माना जाने
तूने दिल इतने दुखाए हैं कि जी जानता है
--दाग देहलवी
तुम मेरे दिन रातों में आ जाते हो
तुम मेरे दिन रातों में आ जाते हो
आंसू बन कर आँखों में आ जाते हो
एक तुम्ही से इश्क है मुझको जन्मों से
क्यों लोगों की बातों में आ जाते हो
--सतलाज राहत
Monday, May 16, 2011
और भी कर देता है दर्द में इजाफा
और भी कर देता है दर्द में इजाफा
तेरे होते हुए गैरों का दिलासा देना
--अज्ञात
http://www.freesms4.com/2010/08/26/tery-hoty-huey-gheroon-ka-dilasa-daina/
तबदीली जब भी आती है, मौसम की अदाओं में
तबदीली जब भी आती है, मौसम की अदाओं में
किसी का यूं बदल जाना, बहुत याद आता है
--अहमद फराज़
क्या सच में मर जाएँ उसे पाने की खातिर
अपने वादे पे यकीन दिलाने की खातिर
क्या सच में मर जाएँ उसे पाने की खातिर
--अमोल सहारन
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हमने मरने के इलावा, जिंदगी में क्या किया
इश्क भी इक बेबसी थी, बेबसी में क्या किया
हमने मरने के इलावा, जिंदगी में क्या किया
--लियाक़त अली असीम
Wednesday, May 11, 2011
जब भी माँगा वही माँगा जो मुक़द्दर में न था
जब भी माँगा वही माँगा जो मुक़द्दर में न था
अपनी हर एक तमन्ना से शिकायत है मुझे !!
--अज्ञात
इसका जवाब किसी शायर ने यूं दिया
अपने मुक़द्दर का तो मिल ही जायेगा ए खुदा
वो चीज़ अदा कर जो किस्मत में नहीं
--अज्ञात
Sunday, May 8, 2011
किसी न किसी पे कोई ऐतबार हो जाता है
किसी न किसी पे कोई ऐतबार हो जाता है
अजनबी कोई शक्स भी यार हो जाता है
खूबियों से नहीं होती मोहब्बत सदा
खामियों से भी अक्सर प्यार हो जाता है
--अज्ञात
उसने यूं बाँध लिया खुद को नए रिश्तों में
मेरी आँखों को ये सब कौन बताने देगा
ख़्वाब जिसके हैं, वही नींद न आने देगा
उसने यूं बाँध लिया खुद को नए रिश्तों में
जैसे मुझ पर, कोई इलज़ाम ना आने देगा
सब अंधेरों से कोई वादा किये बैठे हैं
कौन ऐसे में मुझे शम्मा जलाने देगा
भीगी झील, कँवल, बाग, महक, सन्नाटा
ये मेरा गाँव मुझे शहर न जाने देगा
वो भी आँखों में कईं ख़्वाब लिए बैठा है
ये तसव्वुर ही कभी नींद न आने देगा
अब तो हालात से समझौता ही कर लीजे वसीम
कौन माज़ी की तरफ लौट के जाने देगा
--वसीम बरेलवी
Thursday, May 5, 2011
कुबूल हमने किये जिसके गम खुशी की तरह
किया है प्यार जिसे हमने जिंदगी की तरह
वो आशना भी मिला हमसे अजनबी की तरह
किसे खबर थी बढ़ेगी कुछ और तारीकी
छुपेगा वो किसी बदली में चांदनी की तरह
बढ़ा के प्यास मेरी उसने हाथ छोड़ दिया
वो कर रहा था मुरव्वत भी दिल्लगी की तरह
सितम तो ये है के वो भी न बन सका अपना
कुबूल हमने किये जिसके गम खुशी की तरह
कभी न सोचा था हमने कतील उसके लिए
करेगा हम पे सितम वो भी हर किसी की तरह
--कतील शिफाई
Wednesday, May 4, 2011
है घाटे का सौदा मुहब्बत सदा।
मुहब्बत की वापिस निशानी करें।
शुरू फिर जो चाहें कहानी करें।।
है घाटे का सौदा मुहब्बत सदा।
हिसाब अब लिखें या जुबानी करें।।
चलो नागफनियाँ उखाड़ें सभी।
वहाँ फिर खड़ी रात-रानी करें।।
है रुत पर भला बस किसी का चला।
चलो बातें ही हम सुहानी करें।।
खरीदे बुढापे को कोई नहीं।
सभी तो पसन्द अब जवानी करें।।
बहुत जी लिये और मर भी लिये।
बता क्या तेरा जिन्दगानी करें।।
रवायत नहीं ‘श्याम’ जब ये भली।
तो फिर बातें क्यों हम पुरानी करें।
--श्याम सखा
Source : http://gazalkbahane.blogspot.com/2011/05/gazal-shyam-skha-shyam.html
Sunday, May 1, 2011
गुलज़ार साहब कहते है न....
गुलज़ार साहब कहते है न....
काश तुम्हारे जाने पर
कुछ फर्क तो पड़ता जीने में
प्यास न लगती पानी की या ,नाखून बढ़ना बंद हो जाते
बाल हवा में न उड़ते या धुंआ निकलता सांसो से
सब कुछ वैसे ही चलता है ...
बस इतना फर्क पड़ा है मेरी रातो में
नींद नहीं आती तो अब सोने के लिए
इक नींद की गोली रोज़ निगलनी पड़ती है !
love is always beautiful......
Saturday, April 30, 2011
मैं ठोकर में आसमान रखता हूँ !
हलक़ में अपनी ज़ुबान रखता हूँ !
मैं चुप हूँ कि तेरा मान रखता हूँ !
मेरी बुलंदियों से रश्क कर तू भी
मैं ठोकर में आसमान रखता हूँ !
--अज्ञात
ये मेरे दिल पे घाव कैसा है !!
उम्र का ये पड़ाव कैसा है !
ख्वाहिशों का अलाव कैसा है !!
हसरतें टूट कर बिखर जाये ,
काइदों का दबाव कैसा है !!
जो कभी सूख ही नहीं पाता,
ये मेरे दिल पे घाव कैसा है !!
मैं उलझ कर फंसा रहा जिनमें,
इन लटों का घुमाव कैसा है !!
जिसको देखो बहा ही जाता है,
इस नदी का बहाव कैसा है!!
बेमज़ा जिंदगी है इसके बिन,
तेरे ग़म से लगाव कैसा है!!
कर चुके दफ़्न अर्श ख्वाबों को
फिर ये जीने का चाव कैसा है!!
--अर्श
Source : http://prosingh.blogspot.com/2011/04/blog-post.html
सज़ा बन जाती है गुज़रे वक़्त की यादें
सज़ा बन जाती है गुज़रे वक़्त की यादें
न जाने क्यों छोड़ जाने के लिए मेहरबान होते हैं लोग
--अज्ञात
Wednesday, April 20, 2011
लौट आती है मेरी शब की इबादत खाली
लौट आती है मेरी शब की इबादत खाली ....
जाने किस अर्श पे रहता है खुदा शाम के बाद...
--अज्ञात
Sunday, April 10, 2011
ना हमने बुलाया था तो तुम ही बुला लेते
रिश्तों की हकीकत ये कुछ ऐसे निभा लेते
ना हमने बुलाया था तो तुम ही बुला लेते
दिल में शिकवे थे अगर आते तो कभी एक दिन
कुछ तुम भी कह लेते कुछ हम भी सुना लेते
गुमसुम से ना रहते फिर रातों में अक्सर
डरते जो कभी ख्वाबों में हम तुम को बुला लेते
उजड़ा सा है आँगन भी, है बिना लिपा चूल्हा
तुम साथ अगर होते इस घर को सजा लेते
ना हमने बुलाया था तो तुम ही बुला लेते
कुछ तुम भी कह लेते कुछ हम भी सुना लेते.....
--अज्ञात
Monday, April 4, 2011
ये लड़का कब होगा सयाना क्या पता
मुझे मालूम है तेरे घर का पता
कहाँ है मेरा आशियाना क्या पता
ख़ुदकुशी ही कहीं दुश्वारियों का हल तो नहीं ?
ये इश्क ही न हो मौत का बहाना क्या पता
हर एक को राज़-ए-दिल बता देता है
ये लड़का कब होगा सयाना क्या पता
यु ही बेड के साथ हो लिए हम भी
किस की जीत का है जयकारा क्या पता !!
--अमोल सहारन
Wednesday, March 9, 2011
दिल में उतरेगी तो पूछेगी जुनूं कितना है
दिल में उतरेगी तो पूछेगी जुनूं कितना है
नोक-ए-खंजर ही बताएगी के खूँ कितना है
जमा करते रहे हो अपने को ज़र्रा ज़र्रा
वो ये क्या जाने बिखरने में सुकूं कितना है
--शहरयार
Tuesday, March 8, 2011
ज़ुल्म इतना मत कर की दुश्मनी सी लगे
ज़ुल्म इतना मत कर की दुश्मनी सी लगे
हमने सभी को तुम्हे दोस्त बता रखा है
--अज्ञात
झूठ की भी, सच के जैसी शक्सियत यारो !!
बहुत मुश्किल है कहना, क्या सही है, क्या गलत यारो !
है अब तो झूठ की भी, सच के जैसी शक्सियत यारो !!
दरिंदों को भी पहचाने, तो पहचाने कोई कैसे?
नज़र आती है, चेहरे पर, बड़ी मासूमियत यारो !
जिधर देखो, उधर मिल जायेंगे, अखबार नफरत के
बहुत दिन से, मोहब्बत का न देखा, एक खत यारो !!
वहाँ पर पड़े, कांटेदार ज़हरीला ही उगता है
सियासत की ज़मीन में, है न जाने क्या सिफत यारो !!
[सिफत=quality]
तुम्हारे पास, दौलत की ज़मीन का, एक टुकड़ा है
हमारे पास है, ख़्वाबों की पूरी सल्तनत यारो !!
--कमलेश भट्ट कमल
Monday, February 28, 2011
हाथ मलती रह गयी खूब-सीरत लडकियां
हाथ मलती रह गयी खूब-सीरत लडकियां
खूब-सूरत लड़कियों के हाथ पीले हो गए
--फरयाद आज़र
वो मेरा हाल क्यों पूछे, वो मुझ पर मेहरबान क्यों हो
वो मेरा हाल क्यों पूछे, वो मुझ पर मेहरबान क्यों हो
कि जिनको हुस्न मिल जाता है, उनको दिल नहीं मिलता
--अज्ञात
बहुत मुश्किल होता है खुद को संभाल रखना
बहुत मुश्किल होता है खुद को संभाल रखना
मगर वो कह गया है कि अपना ख़याल रखना
--अज्ञात
मैं जी हुज़ूरी से इंकार करने वाला हूँ...
अमीरे शहर को तलवार करने वाला हूँ,
मैं जी हुज़ूरी से इंकार करने वाला हूँ...
--मुनव्वर राना
मुर्दा बदन में ज़िंदा अरमान रहे होंगे
क़दमों की आहटों से अनजान रहे होंगे
ये रास्ते कभी तो सुनसान रहे होंगे
आँखों से लाश की यूं आंसू नहीं निकलते
मुर्दा बदन में ज़िंदा अरमान रहे होंगे
मर कर भी, मोहब्बत को जिंदा रखा है, जिन्होंने
वो लोग, कितने, भोले नादान रहे होंगे
दुनिया की भीड़ से, जो हट कर हैं, उन्हें पढ़ लो
हम पूजते हैं जिनको इंसान रहे होंगे
साहिल पे नाव कोई यूं ही, नहीं डुबोता
उस नाखुदा के दिल में तूफ़ान रहे होंगे
देता है नूर जल कर चाँद और सितारों को
सूरज पे, शाम-ओ-शब के एहसान रहे होंगे
--सूरज राय
क्या हुआ, तेरी बेरुखी से मुझे
क्या सरोकार अब किसी से मुझे
वास्ता था, तो था, तुझ ही से मुझे
बे-हिसी का भी अब नहीं एहसास
क्या हुआ, तेरी बेरुखी से मुझे
बे-हिसी=senseless
मौत की आरज़ू भी कर देखूं
क्या उम्मीदें थी, जिंदगी से मुझे
फिर किसी पर न ऐतबार आये
यू उतारो न अपने जी से मुझे
तेरा गम भी न हो, तो क्या जीना
कुछ तसल्ली है, दर्द ही से मुझे
कर गए किस तरह तबाह ज़िया
दुश्मन अंदाज़-ए-दोस्ती से मुझे
ज़िया जलंधरी
बद-नज़र उठने ही वाली थी, किसी की जानिब
ले के माज़ी को, जो हाल आया, तो दिल कांप गया
जब कभी उनका ख़याल आया, तो दिल कांप गया
ऐसा तोड़ा था मोहब्बत में किसी ने दिल को
जब भी शीशे में बाल आया, तो दिल कांप गया
सर बलंदी पे तो मगरूर थे हम भी लेकिन
चढ़ते सूरज पे ज़वाल आया तो दिल कांप गया
ज़वाल=decline
बद-नज़र उठने ही वाली थी, किसी की जानिब
अपनी बेटी का ख़याल आया, तो दिल कांप गया
जानिब=तरफ
बद-नज़र=बुरी नज़र
--नवाज़ दिओबंदी
रे जोगी
तू शब्दों का दास रे जोगी
तेरा कहाँ विश्वास रे जोगी
इक दिन विष का प्याला पी जा
फिर न लगेगी प्यास रे जोगी
ये सांसों का का बन्दी जीवन
किसको आया रास रे जोगी
विधवा हो गई सारी नगरी
कौन चला वनवास रे जोगी
पुर आई थी मन की नदिया
बह गए सब एहसास रे जोगी
इक पल के सुख की क्या क़ीमत
दुख हैं बारह मास रे जोगी
बस्ती पीछा कब छोड़ेगी
लाख धरे सन्यास रे जोगी
--राहत इन्दौरी
सुने जाते न थे तुमसे, मेरे दिन रात के शिकवे
सुने जाते न थे तुमसे, मेरे दिन रात के शिकवे
कफ़न सरकाओ !! मेरी बे-जुबानी देखते जाओ
--फानी बदायूनी
Saturday, February 19, 2011
इक बार तो यूं होगा
इक बार तो यूं होगा
थोड़ा सा सुकूं होगा
न दिल में कसक होगी
न सर में जुनूं होगा
--अज्ञात
(फिल्म : सात खून माफ)
नसीब को भी तुम इम्तिहान में रखना
जो घर में है वो तो नसीब है लेकिन
जो खो गया है उसको भी मकान में रखना
सवाल तो मेहनत से ही हल होते हैं
नसीब को भी तुम इम्तिहान में रखना
--निदा फाजली
फिर मैं सुनने लगा हूँ इस दिल की
प्यास की कैसे लाये ताब कोई
न हो दरिया तो हो शराब कोई
रात बजती थी दूर शेहनाई
रोया पी के बहुत शराब कोई
कौन सा ज़ख्म किसने बक्शा है
इसका रखे कहाँ तक हिसाब कोई
फिर मैं सुनने लगा हूँ इस दिल की
आने वाला है फिर अज़ाब कोई
--जावेद अख्तर
Monday, February 7, 2011
एक सुकून इस दिल को नसीब नहीं होता
एक सुकून इस दिल को नसीब नहीं होता
बाकी तो मोहब्बत में कुछ अजीब नहीं होता
हिज्र में तो आँखों में कट जाती थी रातें
सोना मगर वस्ल में भी नसीब नहीं होता
बहुत सुकून रहता है जिंदगी में
मोहब्बत में जब कोई भी रकीब नहीं होता
तेरा ख़याल आते ही मीर याद आ जाता है
तू पास होती है जब कोई भी करीब नहीं होता
--अमोल सहारन
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Thursday, January 13, 2011
जब भी मिलना हो किसी से, ज़रा दूरी रखना
जब भी मिलना हो किसी से, ज़रा दूरी रखना
जान ले लेता है, सीने से लगाने वाला
--नित्यानंद तुषार
Sunday, January 9, 2011
वो अपनी मजबूरियाँ बता रहा था..
वो अपनी मजबूरियाँ बता रहा था..
मुझे लगा कि पीछा छुडा रहा था..
जेहन खो चुका था आँफिस की जी हजूरी मे
दिल अब तलक मुझे दिल्ली घुमा रहा था
उसे भुलाने की कोशिशे पलटवार कर गयी
भूला हुआ भी अब तो याद आ रहा था
तन्हाइयो मे ही गुजरी सब नाकामियाँ अपनी
अब हर कोई साथी अपना बता रहा था
भूला नही हूँ मै तेरी वो सौगाते
तुझसे मिला जख्म कई दिन हरा रहा था
--अमोल सहारन
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Friday, January 7, 2011
वो लड़की घरेलु थी, मैं लड़का आवारा था
दोनों के दिल टूटने का तगड़ा इशारा था
वो लड़की घरेलु थी, मैं लड़का आवारा था
मरने का दरिया बीच जाते किसलिए
डूबने को अपने काफी ये किनारा था
नाराज़गी दुनिया से गलत नहीं मेरी
वो भी नहीं मिला जो हक जायज़ हमारा था
दुःख झेल लिए सारे ख़्वाबों में ही हमने
जिंदगी में तो सदा दिलकश ही नज़ारा था
वक्त बदलने से फितरत नहीं बदलती
दिल आज भी नाकारा है, ये कल भी नाकारा था
--अमोल सहारन
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वो रुलाता है, रुलाये मुझे जी भर के कतील
वो रुलाता है, रुलाये मुझे जी भर के कतील
वो मेरी आँख है, मैं उसको रुलाऊं कैसे?
--कतील शिफाई
खामखाह तो नहीं मौत से डर रहा हूँ मैं..
खामखाह तो नहीं मौत से डर रहा हूँ मैं.....
कोई तो है जिसके लिए नहीं मर रहा हूँ मैं.....
उसे अपने किये पे शर्मिंदा न होना पड़े...
इसलिए ये जिन्दंगी बसर कर रहा हूँ मैं
उसे अपने फैसले पे अफ़सोस ना हो...
इसलिए कामयाबी से अपनी डर रहा हूँ मैं...
मरने की तम्मना बची न जीने की आरज़ू रही....
बेमन से दोनों ही काम कर रहा हूँ मैं.....
तेरे दीदार की इच्छा लिए फिरता हूँ आँखों में..
काम नाजायज है लेकिन कर रहा हूँ मैं..
थोड़ी ताज़ा बयार लगे तो रूह को सकूँ मिले..
कब से यादो के इस बंद कमरे में सड रहा हूँ मैं....
कुछ दिन भले लगे थे ये प्यार महोबत के नगमे...
अब फिराक को ही फिर से पढ़ रहा हूँ मैं....
कल तुझे भूलने का वादा किया था खुद से...
आज फिर उस वादे से मुकर रहा हूँ मैं...
वो मिलता तो जाने क्या करता....
उसके बिना तो शायरी कर रहा हूँ मैं....
कुछ लिहाज़ मेरा नहीं तो अपने माझी का ही कर ले..
कुछ दिन तो तेरा हमसफ़र रहा हूँ मैं...
लोग कहते है मैंने ख़ुदकुशी की है...
मुझे लगता है की तेरे हाथो मर रहा हूँ मैं......
तेरे बिना भी ये दिल्ली अच्छी लगने लगे....
एक नाकाम सी कोशिश फिर कर रहा हूँ मैं...
--अमोल सहारन
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Monday, January 3, 2011
आज हुए से दीवाने ढूँढ़ते हैं ...
किताबों में फ़साने ढूँढ़ते हैं
नादाँ हैं वो गुज़रे ज़माने ढूँढ़ते हैं
जब वो थे तलाश-ए-जिंदगी भी थी
अब तो मौत के ठिकाने ढूँढ़ते हैं
कल खुद ही अपनी महफ़िल से निकाला था
आज हुए से दीवाने ढूँढ़ते हैं
मुसाफिर बेखबर है तेरी आँखों से
तेरे शहर में मैखाने ढूँढ़ते हैं
उनकी आँखों को यूं मत देखो......
उनकी आँखों को यूं मत देखो......
मत देखो यार...
उनकी आँखों को यूं मत देखो......
नए तीर हैं, निशाने ढूँढ़ते हैं
--अज्ञात
न तुझे छोड़ सकते हैं, तेरे हो भी नहीं सकते
न तुझे छोड़ सकते हैं, तेरे हो भी नहीं सकते
ये कैसी बेबसी है, आज हम रो भी नहीं सकते
ये कैसा दर्द है, पल पल हमें तडपाये है
तुम्हारी याद आती है, तो फिर सो भी नहीं सकते
छुपा सकते हैं और न दिखा सकते हैं लोगों को
कुछ ऐसे दाग हैं दिल पर जो हम धो भी नहीं सकते
कहा तो था छोड़ देंगे तुमको, फिर रुक गए
तुम्हे पा तो नहीं सकते, मगर खो भी नहीं सकते
हमारा एक होना भी नहीं मुमकिन रहा अब तो
जीयें कैसे के तुम से दूर हो भी नहीं सकते
--अज्ञात
मै उडा देता हूँ मजाक मे सँजिदगी
मै उडा देता हूँ मजाक मे सँजिदगी...
वो हो जाते है सँजीदा मेरे मजाक पे
--अमोल सहारन
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