Monday, February 28, 2011

बद-नज़र उठने ही वाली थी, किसी की जानिब

ले के माज़ी को, जो हाल आया, तो दिल कांप गया
जब कभी उनका ख़याल आया, तो दिल कांप गया

ऐसा तोड़ा था मोहब्बत में किसी ने दिल को
जब भी शीशे में बाल आया, तो दिल कांप गया

सर बलंदी पे तो मगरूर थे हम भी लेकिन
चढ़ते सूरज पे ज़वाल आया तो दिल कांप गया
ज़वाल=decline

बद-नज़र उठने ही वाली थी, किसी की जानिब
अपनी बेटी का ख़याल आया, तो दिल कांप गया
जानिब=तरफ
बद-नज़र=बुरी नज़र


--नवाज़ दिओबंदी

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