Saturday, April 30, 2011

ये मेरे दिल पे घाव कैसा है !!

उम्र का ये पड़ाव कैसा है !
ख्वाहिशों का अलाव कैसा है !!

हसरतें टूट कर बिखर जाये ,
काइदों का दबाव कैसा है !!

जो कभी सूख ही नहीं पाता,
ये मेरे दिल पे घाव कैसा है !!

मैं उलझ कर फंसा रहा जिनमें,
इन लटों का घुमाव कैसा है !!

जिसको देखो बहा ही जाता है,
इस नदी का बहाव कैसा है!!

बेमज़ा जिंदगी है इसके बिन,
तेरे ग़म से लगाव कैसा है!!

कर चुके दफ़्न अर्श ख्‍वाबों को
फिर ये जीने का चाव कैसा है!!

--अर्श


Source : http://prosingh.blogspot.com/2011/04/blog-post.html

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