मैं इस उम्मीद में डूबा कि तू बचा लेगा
अब इसके बाद मेरा इम्तिहान क्या लेगा
ये एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा
ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा
मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा
कोई चराग़ नहीं हूँ जो फिर जला लेगा
कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए
जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा
हज़ार तोड़ के आ जाऊं उस से रिश्ता वसीम
मैं जानता हूँ वह जब चाहेगा बुला लेगा
मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे
लकीरें हाथ की अपने वह सब जला लेगा
--वसीम बरेलवी
A different version of this gazal is available at
http://aligarians.com/2006/02/main-is-ummiid-pe-duubaa-ke-tuu-bachaa-legaa/
If you know, the author of any of the posts here which is posted as Anonymous.
Please let me know along with the source if possible.
Sunday, December 11, 2011
मैं इस उम्मीद में डूबा कि तू बचा लेगा
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment