Sunday, December 11, 2011

मैं इस उम्मीद में डूबा कि तू बचा लेगा

मैं इस उम्मीद में डूबा कि तू बचा लेगा
अब इसके बाद मेरा इम्तिहान क्या लेगा

ये एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा
ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा

मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा
कोई चराग़ नहीं हूँ जो फिर जला लेगा

कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए
जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा

हज़ार तोड़ के आ जाऊं उस से रिश्ता वसीम
मैं जानता हूँ वह जब चाहेगा बुला लेगा

मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे
लकीरें हाथ की अपने वह सब जला लेगा


--वसीम बरेलवी

A different version of this gazal is available at

http://aligarians.com/2006/02/main-is-ummiid-pe-duubaa-ke-tuu-bachaa-legaa/

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