Sunday, August 21, 2011

तुम आये तो इस रात की औकात बनेगी

सौ चाँद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी
तुम आये तो इस रात की औकात बनेगी

उनसे यही कह आये कि हम अब न मिलेंगे
आखिर कोई तरकीब-ए-मुलाक़ात बनेगी

ये हम से न होगा के किसी एक को चाहें
ए-इश्क ! हमारी न तेरे साथ बनेगी

हैरत कदा-ए-हुस्न कहाँ है अभी दुनिया
कुछ और निखार ले तो तिलिस्मात बनेगी

ये क्या के बढते चलो, बढते चलो आगे
जब बैठ के सोचेंगे तो कुछ बात बनेगी

--जान निसार अख्तर

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