मेरी किस्मत की हथकड़ी हो न ?
तुम मेरे साथ हर घडी हो न ?
मैं सोच सोच के थक जाता हूँ
तुम मेरी सोच से बड़ी हो न ?
बहुत तड़पा हूँ तुम्हे पाने को
तुम भी तकदीर से लड़ी हो न ?
मुझे इस रास्ते में छोड़ के
तुम मेरी सोचो में चल पड़ी हो न ?
कहा करती थी भूल जाऊँगी
शाम होते ही रो पड़ी हो न ?
मैं तनहा किस तरह रह पाऊंगा
जिंदगी तुम बहुत बड़ी हो न ?
सफर में लुफ्त बहुत आएगा
ठोकरों राह में पड़ी हो न?
बुलंदियों, गुरूर था तुमको
मेरे पैरों में गिर पड़ी हो न ?
सतलज आज तक नहीं भूला
एक लड़की का फुलझड़ी होना
--सतलज रहत
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Thursday, September 22, 2011
कहा करती थी भूल जाऊँगी शाम होते ही रो पड़ी हो न ?
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मुझे इस रास्ते में छोड़ के
ReplyDeleteतुम मेरी सोचो में चल पड़ी हो न ?
कहा करती थी भूल जाऊँगी
शाम होते ही रो पड़ी हो न ?
मैं तनहा किस तरह रह पाऊंगा
जिंदगी तुम बहुत बड़ी हो न ?
क्या बात है, सलाम आपकी अभिव्यक्ति को ।