Thursday, September 22, 2011

कहा करती थी भूल जाऊँगी शाम होते ही रो पड़ी हो न ?

मेरी किस्मत की हथकड़ी हो न ?
तुम मेरे साथ हर घडी हो न ?

मैं सोच सोच के थक जाता हूँ
तुम मेरी सोच से बड़ी हो न ?

बहुत तड़पा हूँ तुम्हे पाने को
तुम भी तकदीर से लड़ी हो न ?

मुझे इस रास्ते में छोड़ के
तुम मेरी सोचो में चल पड़ी हो न ?

कहा करती थी भूल जाऊँगी
शाम होते ही रो पड़ी हो न ?

मैं तनहा किस तरह रह पाऊंगा
जिंदगी तुम बहुत बड़ी हो न ?

सफर में लुफ्त बहुत आएगा
ठोकरों राह में पड़ी हो न?

बुलंदियों, गुरूर था तुमको
मेरे पैरों में गिर पड़ी हो न ?

सतलज आज तक नहीं भूला
एक लड़की का फुलझड़ी होना

--सतलज रहत

1 comment:

  1. मुझे इस रास्ते में छोड़ के
    तुम मेरी सोचो में चल पड़ी हो न ?

    कहा करती थी भूल जाऊँगी
    शाम होते ही रो पड़ी हो न ?

    मैं तनहा किस तरह रह पाऊंगा
    जिंदगी तुम बहुत बड़ी हो न ?

    क्या बात है, सलाम आपकी अभिव्यक्ति को ।

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