नज़र उठाओ ज़रा तुम तो क़ायनात चले,
है इन्तज़ार कि आँखों से कोई बात चले
तुम्हारी मर्ज़ी बिना वक़्त भी अपाहज है
न दिन खिसकता है आगे, न आगे रात चले
न जाने उँगली छुड़ा के निकल गया है किधर
बहुत कहा था जमाने से साथ साथ चले
किसी भिखारी का टूटा हुआ कटोरा है
गले में डाले उसे आसमाँ पे रात चले
--गुलज़ार
Audio : http://tanhayi.mywebdunia.com/2008/11/11/1226401126621.html
-Gulzar
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