Wednesday, December 7, 2011

दिल वो पागल के कोई बात न माने जैसे

जागती रात के होंटों पे फ़साने जैसे
एक पल में सिमट आयें हों ज़माने जैसे

अक्ल कहती है भुला दो जो नहीं मिल पाया
दिल वो पागल के कोई बात न माने जैसे

रास्ते में वही मंज़र हैं पुराने अब तक
बस कमी है तो नहीं लोग पुराने जैसे

आइना देख के एहसास यही होता है
ले गया वक़्त हो उम्रों के खजाने जैसे

रात की आँख से टपका हुआ आंसू वसी
मखमली घास पे मोती के हों दाने जैसे

--वसी शाह

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