Tuesday, October 18, 2011

मेरा दुश्मन भी मेरे भाइयों में आता है

अब इसका ज़िक्र भी सच्चाइयों में आता है
मेरा दुश्मन भी मेरे भाइयों में आता है

लब पे नाम तो बरसों तलक नहीं आता
तेरा ख़याल पर तनहाइयों में आता है

हम शिखर भी दंगाइयों का होते हैं
हमारा नाम भी दंगाइयों में आता है

कभी मैं उसको रोने से रोकता ही नहीं
मुझे सुकून ही गहराइयों में आता है

तुम्हारे साथ जो तनहाइयों में रहता है
वो मेरे पास भी तनहाइयों में आता है

मेरा मौसम सा बचपन जो खो गया थ कहीं
अभी वो सुबह की अंगडाईयों में आता है

वो अब सुनाई भी खामोशियों में देता है
वो अब दिखाई भी परछाइयों में आता है

सुना है उसकी आँखें भी भीग जाती हैं
'सतलज' याद जब तनहाइयों में आता है

--सतलज राहत

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