वो अपनी मजबूरियाँ बता रहा था..
मुझे लगा कि पीछा छुडा रहा था..
जेहन खो चुका था आँफिस की जी हजूरी मे
दिल अब तलक मुझे दिल्ली घुमा रहा था
उसे भुलाने की कोशिशे पलटवार कर गयी
भूला हुआ भी अब तो याद आ रहा था
तन्हाइयो मे ही गुजरी सब नाकामियाँ अपनी
अब हर कोई साथी अपना बता रहा था
भूला नही हूँ मै तेरी वो सौगाते
तुझसे मिला जख्म कई दिन हरा रहा था
--अमोल सहारन
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बहुत ही प्यारी रचना।
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कादेरी भूत और उसका परिवार।
मासिक धर्म और उससे जुड़ी अवधारणाएं।