अब इसका ज़िक्र भी सच्चाइयों में आता है
मेरा दुश्मन भी मेरे भाइयों में आता है
लब पे नाम तो बरसो तलाक नहीं आता
तेरा ख़याल पर तन्हाइयों में आता है
हम शिकार भी दंगाइयों का होते हैं
हमारा नाम भी दंगाइयों में आता है
कभी मैं उसको रोने से रोकता ही नहीं
मुझे सुकून ही गहराइयों में आता है
तुम्हारे साथ जो तन्हाइयों में रहता है
वो मेरे पास भी तन्हाइयों में आता है
मेरा मासूम सा बचपन जो खो गया है कहीं
अभी वो सुबह की अंगडाइयों में आता है
वो अब सुन्हाई भी खामोशियों में देता है
वो अभी दिखाई भी परछाइयों में आता है
सुना है उसकी आँखें भीग जाती हैं
सतलज याद जब तन्हाइयों में आता है
--सतलज राहत
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Friday, July 8, 2011
अब इसका ज़िक्र भी सच्चाइयों में आता है
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