Sunday, June 19, 2011

मेरे ज़ख्मो में उसकी दास्तान हो जैसे

सच में ही बहुत ऊंची उड़ान हो जैसे
मेरे पैरों के नीचे आसमान हो जैसे

मुझे दुनिया ने तमाशा बना रखा है
हर एक सांस नया इम्तिहान हो जैसे

बिछड के तुझसे लेटा हूँ अपने कमरे में
बहुत ही लंबे सफर की थकान हो जैसे

तुझे देखूं तो एक पल तो ऐसा लगता है
तू सच में मेरे लिए परेशान हो जैसे

हर एक पल, हर लम्हा बढती जाती है
तुम्हारी याद नहीं हो, लगान हो जैसे

तेरा ख़याल बस ख़याल, बस ख़याल तेरा
सारी दुनिया से ही दिल बदगुमान हो जैसे

वो मेरे जिस्म को इस तरह तकती रहती है
मेरे ज़ख्मो में उसकी दास्तान हो जैसे

मैं खुद के सामने ज़ाहिर तो ऐसा करता हूँ
तुझे भुला के बहुत इत्मिनान हो जैसे

'सतलज' तेरे कदम चूमते हैं ये रास्ते
हर एक मंजिल पे तेरा निशान हो जैसे

--सतलज राहत

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