यूं न मिल, मुझसे खफा हो जैसे
साथ चल, मौज-ए-सबा हो जैसे
लोग यूं देख कर हंस देते हैं
तू मुझे भूल गया हो जैसे
मौत भी आई तो इस नाज़ के साथ
मुझ पे एहसान किया हो जैसे
ऐसे अनजान बने बैठे हो
तुमको कुछ भी न पता हो जैसे
हिचकियाँ रात को आती ही रहीं
तू ने फिर याद किया हो जैसे
ज़िंदगी बीत रही है दानिश
इक बे-जुर्म सज़ा हो जैसे
--एहसान दानिश
वाह!बहुत ही बेहतरीन लिखा आप ने.....
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