तुझसे बिछड़ा अगर मैं तो मर जाऊँगा
साथ लेकर भी तुझको किधर जाऊँगा
अब मुझे जिंदगानी में आने भी दे
मैं तेरी रूह के ज़ख्म भर जाऊँगा
मैं तो राह-ए-वफ़ा पे चला ही नहीं
उसको लगता था हद से गुज़र जाऊंगा
मुझको इस जिंदगानी ने मोहब्बत न दी
मैंने सोचा था कुछ दिन ठहर जाऊंगा
बस तेरे नाम से जग में बदनाम हूँ
मैं मरा, जो अगर तेरे सर जाऊँगा
खुद तमाशा भी करता है अब इश्क का
उसने मुझसे कहा था मुकर जाऊँगा
दुनिया ऐसी ही चलती रहेगी इतनी मगर
तू भी मर जायेगी मैं भी मर जाऊंगा
मैंने सोचा नहीं, सोचना था मुझे
इतनी जल्दी कहाँ से सुधर जाऊंगा
एक दिन इस उदासी की तस्वीर में
इश्क के सैकडो रंग भर जाऊँगा
तेरे शहर में, तेरी गलियों में फिर
मुझको जाना नहीं था, मगर जाऊँगा
इश्क की राह में खुद की कुर्बानियां
मैं बहुत दे चुका अब तो घर जाऊँगा
सारी दुनिया फसादो से आबाद है
अब जो छुट्टी मिली चाँद पर जाऊँगा
मुझको अपने खयालो से आज़ाद कर
तू तो होगा वहाँ, मैं जिधर जाऊँगा
मैंने दुनिया सजाई है तेरे लिए
सब चला जाएगा मैं अगर जाऊँगा
मैं तो सतलज हूँ दरिया सा बहता हुआ
एक दरिया हूँ, फिर भी ठहर जाऊँगा
--सतलज राहत
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Tuesday, July 5, 2011
तुझसे बिछड़ा अगर मैं तो मर जाऊँगा
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दिल को छू जाने वाले भाव।
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जादुई चिकित्सा !
इश्क के जितने थे कीड़े बिलबिला कर आ गये...।