न कश्ती है न पतवार कोई
ए खुदा भेज मददगार कोई
तेरी किस्मत में कितनी शामें हैं
हमारे साथ भी गुज़ार कोई
लोग शैतान या फ़रिश्ते हैं
खुदा इंसान भी तो उतार कोई
खुद से बाहर निकल नहीं पाता
बैठा रहता है पहरेदार कोई
तुझे पता भी है हर पल तेरा
करता रहता है इंतज़ार कोई
खुदा वही पे मुसल्लत कर दे
कबूतर के लिए मीनार कोई
पता चलता है हिचकियों से मुझे
याद करता है बार बार कोई
हमसे लिहाज़ अब नहीं होगा
सामने आये अब की बार कोई
बहुत ढूंढा हमें न मिल पाया
तुम्हारी बात का आधार कोई
बस यही चाहते हैं हम 'सतलज'
ढूँढ लाये तुझे एक बार कोई
--सतलज राहत
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Sunday, July 3, 2011
हमारे साथ भी गुज़ार कोई
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अच्छा कलाम बधाई .
ReplyDeleteबस यही चाहते हैं हम 'सतलज'
ReplyDeleteढूँढ लाये तुझे एक बार कोई .....वाह